नई दिल्ली,11 अप्रैल (युआईटीवी)- 26/11 मुंबई हमले का मुख्य आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को अमेरिका से प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया है।अमेरिका के न्याय विभाग के अनुसार, राणा पर 26/11 हमलों में प्रत्यक्ष भूमिका निभाने और साजिश रचने के आरोप हैं। गुरुवार को उसे राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने नई दिल्ली में गिरफ्तार किया और विशेष अदालत में पेश किया गया। अदालत ने राणा को 18 दिन की एनआईए कस्टडी में भेज दिया है।
तहव्वुर हुसैन राणा एक कनाडाई नागरिक है,जो मूल रूप से पाकिस्तान का निवासी है। वह अमेरिकी नागरिक और लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाऊद गिलानी का करीबी दोस्त और साझेदार रहा है। हेडली ने भारत में साल 2008 के मुंबई हमलों की योजना बनाने और स्थानों की रेकी करने में अहम भूमिका निभाई थी। राणा और हेडली मिलकर आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए योजनाएँ बनाते थे।
2013 में राणा को अमेरिका के इलिनोइस राज्य में एक अदालत ने आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को सहयोग देने और डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में एक असफल आतंकी हमले की साजिश में दोषी पाया था। उसे 14 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। उसी केस में हेडली को भी दोषी ठहराया गया और 35 साल की सजा दी गई। हेडली पर मुंबई में छह अमेरिकियों की हत्या में भूमिका और डेनमार्क में एक अखबार पर हमला करने की योजना का भी आरोप था।
26 नवंबर 2008 की रात भारत के इतिहास में एक काले दिन के रूप में दर्ज है। पाकिस्तान से समुद्री रास्ते मुंबई पहुँचे 10 आतंकवादियों ने शहर के प्रमुख स्थानों—ताज होटल,ओबेरॉय ट्राइडेंट,नरीमन हाउस,छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और लियोपोल्ड कैफे आदि पर एक साथ हमला किया था। इन हमलों में 164 लोग मारे गए और 300 से अधिक लोग घायल हुए थे। हमलावरों ने न केवल भारतीय नागरिकों को बल्कि विदेशी नागरिकों को भी निशाना बनाया था।
हमले को अंजाम देने वाले 10 में से 9 आतंकियों को भारतीय सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में मार गिराया,जबकि एकमात्र जिंदा पकड़ा गया आतंकी अजमल आमिर कसाब था, जिसे बाद में अदालत ने फाँसी की सजा सुनाई और उसे 2012 में फाँसी दे दी गई।
अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा जारी बयान में एक चौंकाने वाला खुलासा किया गया है। राणा और हेडली के बीच की इंटरसेप्टेड बातचीत के अनुसार,राणा ने 26/11 के हमले को सही ठहराया और यहाँ तक कहा कि “भारतीय इसके लायक थे।” उसने उन नौ आतंकियों की सराहना की,जो हमले में मारे गए और कहा कि उन्हें पाकिस्तान का सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘निशान-ए-हैदर’ दिया जाना चाहिए।
निशान-ए-हैदर पाकिस्तान का सबसे बड़ा सैन्य पुरस्कार है,जो केवल उन सैनिकों को दिया जाता है,जिन्होंने दुश्मन का मुकाबला करते हुए असाधारण बहादुरी दिखाई हो। पाकिस्तान की स्वतंत्रता के बाद से अब तक यह सम्मान केवल 11 लोगों को ही दिया गया है। राणा की यह माँग उसकी कट्टर सोच और आतंकी मानसिकता को दर्शाती है।
राणा को भारत लाने के लिए भारत सरकार ने लंबी कानूनी और कूटनीतिक लड़ाई लड़ी। अमेरिका और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि के तहत इस प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। अमेरिकी न्याय विभाग ने कहा कि यह कदम उन छह अमेरिकी नागरिकों और अन्य निर्दोष पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में बेहद अहम है जो 26/11 हमलों में मारे गए थे।
एनआईए ने राणा के खिलाफ पहले ही मामला दर्ज कर रखा था और उसकी भूमिका की विस्तृत जाँच की जा रही थी। अब जबकि वह भारत की हिरासत में है,उससे 26/11 की पूरी साजिश,पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों से उसके संबंध और हेडली के साथ उसकी साझेदारी के बारे में गहन पूछताछ की जाएगी।
तहव्वुर राणा का भारत प्रत्यर्पण उन सैकड़ों पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए आशा की किरण है,जो पिछले 16 साल से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह घटना न केवल भारत की सुरक्षा व्यवस्था को एक गहरा झटका थी,बल्कि वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक निर्णायक मोड़ भी बनी। राणा जैसे आतंकवादियों को न्याय के कठघरे में लाना अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और संकल्प का प्रतीक है।
अब जबकि राणा भारत में है,उम्मीद की जा रही है कि वह मुंबई हमलों की साजिश और उन ताकतों की पहचान करने में मदद करेगा,जो आज भी भारत की शांति को भंग करने की कोशिश में लगे हुए हैं।