मुंबई,6 अप्रैल (युआईटीवी)- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से रेपो रेट में कोई भी बदलाव न करते हुए 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है। 3 से 5 अप्रैल के बीच मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक हुई थी। अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में लगतार सातवीं बार आरबीआई ने रेपो रेट में कोई बदलाव न करते हुए,इसे 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस पर कहा कि रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किए जाने का फैसला मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के छह में से पाँच सदस्यों की सहमति से लिया गया है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उद्देशय से मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने इस पहल को जारी रखने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि आरबीआई की अवस्फीतिकारी नीति को अर्थव्यवस्था की स्थिरता व विकास के लिए जारी रखा जाएगा।
शक्तिकांत दास ने कहा कि खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति का प्रभाव आने वाले समय में भी जारी रहेगा।
फरवरी 2023 में केंद्रीय बैंक ने आखिरी बार रेपो रेट में बदलाव किया था। तब इसे 6.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया गया था। मई 2022 और फरवरी 2023 के बीच आरबीआई ने रेपो रेट में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि की थी। गौरतलब है कि रेपो रेट वह ब्याज दर है, जिस पर अन्य बैकों को आरबीआई द्वारा अल्पकालिक ऋण दिया जाता है।
मुद्रास्फीति अब आरबीआई की 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा से घटकर 5 प्रतिशत पर आ गई है। लेकिन केंद्रीय बैंक का लक्ष्य इसे अर्थव्यवस्था के लिए आदर्श माने जाने वाले 4 प्रतिशत तक लाना है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कई बार कहा है कि हालाँकि मुद्रास्फीति में कमी तो आ रही है,लेकिन जब तक यह घटकर चार प्रतिशत पर नहीं आ जाती है,तब तक अपनी नीतियों में केंद्रीय बैंक कोई भी बदलाव नहीं करेगा।
आरबीआई के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि केंद्रीय बैंक को स्थिरता और विश्वास पर ध्यान देना चाहिए और उसके लिए सर्वोच्च प्राथमिकता का विषय विकास ही होना चाहिए।
दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत की जीडीपी वृद्धि सबसे तेज गति से हो रही है और ऐसे में आरबीआई के पास पर्याप्त गुंजाइश है कि वह निकट अवधि में विकास को प्रभावित किए बिना ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करे। अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था ने बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर सरकारी खर्च और बढ़ते घरेलू माँग के कारण आश्चर्यजनक रूप से 8.6 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की थी।
अर्थव्यवस्था की बुनियाद राजकोषीय घाटा के नियंत्रण में होने से मजबूत हो गई है। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में राजकोषीय घाटे में गिरावट मदद करेगा।
जनवरी-मार्च तिमाही के लिए आर्थिक संकेतक भी उत्साहजनक रहे हैं। हौथी हमलों के कारण लाल सागर में जहाजों की आवाजाही में बाधाएँ उत्पन्न हुई हैं,लेकिन इन सब के बावजूद भी निर्यात बढ़ रहा है।