एर्नाकुलम,31 दिसंबर (युआईटीवी)- यमन के राष्ट्रपति रशाद मोहम्मद अल-अलीमी ने केरल की नर्स निमिषा प्रिया की फाँसी की सजा को मंजूरी दे दी है। यमन में निमिषा को हत्या के आरोप में फाँसी की सजा सुनाई गई थी और यह संभावना जताई जा रही है कि उसे एक महीने के भीतर फाँसी दी जा सकती है। इस फैसले ने निमिषा के परिवार और भारत सरकार को एक नई कानूनी और राजनयिक चुनौती दी है। मृतक यमनी नागरिक तलाल अब्दो मेहदी के परिवार और कबीले के नेताओं से अपराध को माफ करने की कोशिशें अब तक विफल रही हैं।
निमिषा प्रिया को यह सजा 2017 में हुई हत्या के मामले में सुनाई गई थी। इस मुद्दे के लेकर पिछले साल सितंबर में यमन की राजधानी सना में भारतीय दूतावास ने वकील अब्दुल्ला अमीर को नियुक्त किया था,जो मामले की बातचीत और रिहाई के लिए प्रयास कर रहे थे। वकील ने बातचीत शुरू करने के लिए प्री-नेगोशिएशन फीस (16.60 लाख रुपये) की दूसरी किस्त का तुरंत भुगतान करने की माँग की थी। हालाँकि,रिहाई के लिए जा रहे प्रयास तब ठप हो गए,जब यह कहा गया कि इस राशि के ट्रांसफर के बाद ही बातचीत शुरू होगी।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने 4 जुलाई को वकील को 19,871 डॉलर की पहली किस्त सौंपी,जबकि वकील ने शुरू में कहा था कि बातचीत के लिए कुल 40,000 डॉलर की आवश्यकता होगी,जिसे दो किस्तों में भुगतान करना होगा। पिछले साल जून में ‘सेव निमिषा प्रिया एक्शन काउंसिल’ ने विदेश मंत्रालय के खाते में उनकी रिहाई के लिए 16.71 लाख रुपये जमा किए थे। निमिषा की माँ प्रेमकुमारी ने भी बेटी की रिहाई के लिए डील पर बातचीत शुरू करने के लिए दूतावास के बैंक खाते के माध्यम से 40,000 डॉलर ट्रांसफर करने की अनुमति माँगी थी। विदेश मंत्रालय ने निमिषा की माँ की इस अनुरोध को अपनी स्वीकृति दे दी थी।
निमिषा प्रिया के लिए यह एक कठिन और चुनौतीपूर्ण समय रहा है। वह पलक्कड़ जिले की निवासी हैं और 2012 में नर्स के तौर पर यमन गई थीं। वहीं,2015 में उन्होंने तलाल अब्दो मेहदी के साथ मिलकर एक क्लीनिक खोला था। हालाँकि,तलाल ने निमिषा को बिना बताए क्लीनिक में अपने नाम को शेयरहोल्डर के तौर पर शामिल कर लिया और क्लीनिक की आधी आय हड़पने की कोशिश की। इसके बाद उसने लोगों से यह भी कहा कि वह उसका पति है। जब निमिषा ने इस पर सवाल उठाया, तो तलाल के साथ उनका विवाद शुरू हो गया। तलाल ने न केवल उसे शारीरिक रूप से मारा,बल्कि उसे यौन उत्पीड़न के लिए भी मजबूर किया।
तलाल के उत्पीड़न से तंग आकर निमिषा ने जुलाई 2017 में उसे नशीला इंजेक्शन दे दिया,जिसके कारण उसकी मौत हो गई। निमिषा का कहना था कि उसका इरादा तलाल को मारने का नहीं था,बल्कि उसका उद्देश्य केवल तलाल के पास मौजूद पासपोर्ट को वापस पाना था,ताकि वह अपने देश लौट सके,लेकिन यह घटना इतनी बड़ी बन गई कि उसे हत्या के आरोप में फाँसी की सजा सुनाई गई।
निमिषा की मां प्रेमकुमारी ने कई बार यमन जाकर मृतक के परिवार से मुलाकात की और बेटी की रिहाई की कोशिश की,लेकिन यमन के सुप्रीम कोर्ट ने मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और सजा में किसी भी प्रकार की छूट की माँग को खारिज कर दिया। इसके बाद,भारत सरकार और यमन सरकार के बीच बातचीत का सिलसिला जारी रहा,लेकिन अब तक किसी भी प्रकार की राहत की संभावना नहीं दिखी है।
यह मामला न केवल निमिषा के परिवार के लिए एक कठिन चुनौती बन गया है, बल्कि भारत और यमन के बीच कूटनीतिक संबंधों को भी प्रभावित कर सकता है। इस बीच,निमिषा की रिहाई की कोशिशों को लेकर कई भारत सरकार के कूटनीतिक प्रयास किए गए,लेकिन फिर भी न्यायिक प्रणाली ने अपनी कार्यवाही पूरी की और सजा को बरकरार रखा।
निमिषा के मामले ने यह साबित कर दिया है कि व्यक्तिगत विवादों और संघर्षों के कारण कानूनी और राजनयिक रास्ते पर बड़े सवाल उठ सकते हैं। यमन में यह मामला इसलिए भी जटिल हो गया क्योंकि वहाँ के कबीले और समुदायों की सांस्कृतिक और न्यायिक प्रणाली भारतीय न्याय प्रणाली से अलग है और इस वजह से सजा में कोई भी छूट या समझौता कठिन साबित हुआ।
निमिषा प्रिया की कहानी एक दुखद और जटिल मामला है,जिसमें व्यक्तिगत संघर्षों ने एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे का रूप लिया। उनका मामला न केवल उनके परिवार,बल्कि भारत और यमन के बीच के कूटनीतिक संबंधों पर भी प्रभाव डाल सकता है। इस दौरान निमिषा की माँ प्रेमकुमारी का संघर्ष और उनकी बेटी की रिहाई के लिए निरंतर प्रयासों को देखा गया, हालाँकि अब तक कोई सफलता नहीं मिल पाई है। यह मामला हमें यह याद दिलाता है कि कभी-कभी अंतर्राष्ट्रीय मामलों में न्याय और मानवाधिकार की बहस कितनी जटिल हो सकती है।