बीपीएससी छात्र आंदोलन (तस्वीर क्रेडिट@Divyaprakas8)

पटना में बीपीएससी परीक्षा रद्द कराने को लेकर शुरू हुआ छात्रों का विरोध प्रदर्शन अब राजनीतिक ‘अखाड़ा’ बन गया

पटना,31 दिसंबर (युआईटीवी)- बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा को लेकर शुरू हुआ छात्रों का विरोध प्रदर्शन अब एक राजनीतिक मुद्दे का रूप ले चुका है। इस आंदोलन के दौरान,जब से राजनीतिक दलों के नेता इसमें कूद पड़े हैं,यह मुद्दा अब राजनीति का अखाड़ा बनता जा रहा है। बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए,सभी प्रमुख राजनीतिक दल इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं। चुनावी साल में यह एक बड़ा मौका है और ऐसे में सभी दल युवाओं और छात्रों के हितों की बात करके अपना वोट बैंक बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।

परीक्षा के शुरुआती दौर में छात्रों ने नॉर्मलाइजेशन को लेकर विरोध जताया था, जिसके बाद बिहार लोक सेवा आयोग ने अपनी सफाई दी और मामला शांत हो गया, लेकिन जब पटना के बापू भवन स्थित एक परीक्षा केंद्र में परीक्षा के दौरान हुई अनियमितताओं के बाद विरोध शुरू हुआ,तब इसे एक बड़ा मुद्दा बना दिया गया। आयोग ने उस केंद्र की परीक्षा को रद्द करने का निर्णय लिया और पुनः परीक्षा आयोजित करने का फैसला लिया। इस फैसले के बाद,छात्रों ने पूरे परीक्षा को रद्द करने की माँग की। इसके बाद बड़ी संख्या में छात्र पटना के गर्दनीबाग धरना स्थल पर पहुँच गए और धरना पर बैठ गए।

पिछले दो सप्ताह से चल रहा यह आंदोलन अब और अधिक गंभीर हो गया है। छात्र नेता और आंदोलनकारी इस आंदोलन को लेकर सड़कों पर हैं,लेकिन अब यह मामला राजनीतिक बनता जा रहा है। बिहार के विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने आंदोलन के समर्थन में धरनास्थल का दौरा किया और इसके बाद जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर और निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने भी इस मोर्चे को अपना समर्थन दिया। पप्पू यादव ने राज्यपाल से मुलाकात की,जबकि प्रशांत किशोर ने छात्रों के प्रतिनिधिमंडल के साथ मुख्य सचिव से मुलाकात की।

हालाँकि,अभी तक बीपीएससी ने पूरी परीक्षा को रद्द करने का कोई निर्णय नहीं लिया है,लेकिन इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी का सिलसिला लगातार जारी है। विपक्षी नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक अजय कुमार का कहना है कि चूँकि चुनावी वर्ष शुरू होने वाला है,इसलिए सभी दल इस आंदोलन को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। छात्र आंदोलन में शामिल होने वाले दलों के नेताओं का उद्देश्य है कि वे युवाओं के बीच अपनी राजनीतिक उपस्थिति मजबूत करें। छात्रों की स्थिति यह है कि जो भी नेता उनकी मदद की बात करता दिखता है,वे उसी के साथ जुड़ जाते हैं।

इस आंदोलन की शुरुआत करने वाले छात्र नेता दिलीप कुमार ने कहा कि जो भी पार्टी विपक्ष में होती है,उसके नेता आंदोलन का समर्थन करने आते हैं,लेकिन जब वे सत्ता में होते हैं,तो पूरी तरह से चुप्पी साध लेते हैं। दिलीप कुमार ने आरोप लगाया कि राजनीतिक दलों ने इस आंदोलन को पूरी तरह से राजनीतिकरण कर दिया है। उनका कहना था कि इन नेताओं का उद्देश्य छात्रों की असल समस्याओं को हल करने के बजाय अपने राजनीतिक फायदे के लिए आंदोलन में शामिल होना है।

बीपीएससी की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा 13 दिसंबर को आयोजित की गई थी। इसके बाद से ही छात्र परीक्षा में अनियमितता की बात कर रहे थे,खासतौर पर पटना के बापू भवन परीक्षा केंद्र में हुई गड़बड़ी को लेकर उनका गुस्सा फूटा। आयोग ने इस परीक्षा केंद्र की परीक्षा रद्द करने का आदेश दिया और पुनः परीक्षा कराने की बात कही। इसके बाद छात्रों ने पूरी परीक्षा को रद्द करने की माँग की।

अब इस आंदोलन का स्वरूप और अधिक गंभीर होता जा रहा है,क्योंकि राजनीतिक दलों के नेता इस मुद्दे को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि बिहार की मौजूदा सरकार ने छात्रों के हितों की अनदेखी की है और बीपीएससी की परीक्षा में हुई गड़बड़ी से छात्रों का भविष्य प्रभावित हुआ है। वहीं,सत्ताधारी दल के नेता यह दावा कर रहे हैं कि छात्रों की समस्याओं का समाधान जल्द ही किया जाएगा और इस मुद्दे पर आवश्यक कदम उठाए जाएँगे।

इस आंदोलन की राजनीतिक हलचल में सबसे दिलचस्प बात यह है कि छात्रों की माँगों के प्रति अब तक सरकार या आयोग ने कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है,जिससे छात्र और अधिक आक्रोशित हो रहे हैं। राजनीति में आए इस मोड़ ने इस आंदोलन को एक नया मोड़ दिया है और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार या आयोग छात्रों की माँगों के प्रति क्या कदम उठाते हैं। क्या वे छात्रों के हित में निर्णय लेंगे या यह आंदोलन चुनावी मुद्दे के रूप में सिमट जाएगा?

सभी राजनीतिक दल यह मानते हैं कि युवा मतदाता अगले चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और छात्र आंदोलन के जरिए वे युवाओं को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि वे उनके हितों के लिए खड़े हैं। हालाँकि,दिलीप कुमार जैसे छात्र नेताओं का कहना है कि यह सिर्फ चुनावी स्वार्थ की एक राजनीति है,जो छात्रों की समस्याओं का समाधान नहीं करती।

कुल मिलाकर,बीपीएससी परीक्षा को लेकर जो छात्र आंदोलन शुरू हुआ था,वह अब एक बड़े राजनीतिक विवाद का रूप ले चुका है। राजनीतिक दलों के नेताओं का इसमें कूदना और समर्थन देना इस आंदोलन को एक नई दिशा दे रहा है और अब यह देखना होगा कि अंततः यह आंदोलन किस दिशा में बढ़ता है और छात्रों की माँगों को लेकर सरकार और आयोग क्या कदम उठाते हैं।