ओस्लो,6 मार्च (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ग्रीनलैंड को अमेरिका में शामिल करने के लिए किए गए नए प्रयासों को डेनमार्क ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है। ट्रंप ने बुधवार को एक घोषणा में कहा कि उनका प्रशासन ग्रीनलैंड के लोगों के अपने भविष्य को निर्धारित करने के अधिकार का “पुरजोर समर्थन” करेगा और यदि ग्रीनलैंड के लोग चाहें,तो वे संयुक्त राज्य अमेरिका में उनका स्वागत करने के लिए तैयार हैं।
ट्रंप के इस बयान पर डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने अपनी प्रतिक्रिया दी और स्पष्ट रूप से कहा कि ग्रीनलैंड का भविष्य केवल ग्रीनलैंड के लोगों का निर्णय होगा। उन्होंने कहा कि, “ग्रीनलैंड ग्रीनलैंड के लोगों का है। यह हमारे राष्ट्रीय दृष्टिकोण को दर्शाता है,जिसे हम डेनिश सरकार की ओर से बहुत दृढ़ता से समर्थन करते हैं।” डेनमार्क और ग्रीनलैंड के नेताओं ने ट्रंप के विचारों का विरोध करते हुए यह स्पष्ट किया कि ग्रीनलैंड का भविष्य और उसकी स्थिति पूरी तरह से ग्रीनलैंड के लोगों द्वारा तय की जाएगी,न कि अमेरिका या किसी और बाहरी ताकतों द्वारा।
ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री म्यूट एगेडे ने भी ट्रंप के दावे को पूरी तरह से खारिज किया और सोशल मीडिया पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने लिखा कि ग्रीनलैंड के लोग अमेरिका का हिस्सा बनने की इच्छा नहीं रखते हैं और उनका भविष्य पूरी तरह से उनके अपने हाथों में होना चाहिए। डेनमार्क के रक्षा मंत्री ट्रॉल्स लुंड पॉल्सन ने भी इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी और कहा कि ग्रीनलैंड कभी भी अमेरिका का हिस्सा नहीं बनेगा। उनके मुताबिक,ग्रीनलैंड डेनमार्क का हिस्सा है और हमेशा डेनमार्क का ही रहेगा और यह स्थिति किसी भी बाहरी दबाव से प्रभावित नहीं होगी।
ग्रीनलैंड, जो कि दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है, ऐतिहासिक रूप से डेनमार्क का हिस्सा रहा है। 1953 तक यह डेनमार्क का उपनिवेश था,लेकिन इसके बाद इसे डेनमार्क का अभिन्न हिस्सा माना गया और ग्रीनलैंड के लोगों को डेनिश नागरिकता प्रदान की गई। 1979 में ग्रीनलैंड को स्वशासन प्राप्त हुआ,जिसके बाद वहाँ की सरकार ने आंतरिक मामलों पर नियंत्रण किया,लेकिन डेनमार्क ने अपनी विदेश नीति और रक्षा नीति पर अधिकार बनाए रखा। इस स्वशासन के बावजूद,ग्रीनलैंड के लोग डेनमार्क के नागरिक थे और उनकी विदेश नीति पर डेनमार्क का प्रभाव था।
यह पहली बार नहीं है,जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड को अमेरिका का हिस्सा बनाने की बात की है। इससे पहले भी ट्रंप ने ग्रीनलैंड के बारे में विचार व्यक्त किए थे और उन्होंने इसे खरीदने का प्रस्ताव भी रखा था। ट्रंप ने ग्रीनलैंड की रणनीतिक स्थिति को लेकर यह बयान दिया था कि यह अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है,लेकिन डेनमार्क और ग्रीनलैंड की सरकारों ने इस विचार को खारिज कर दिया था और कहा था कि ग्रीनलैंड बिक्री के लिए नहीं है।
ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री एगेडे ने एक बार फिर से ट्रंप के विचारों का विरोध करते हुए कहा कि ग्रीनलैंड के लोग अपना भविष्य खुद तय करेंगे। उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा कि, “हम न तो अमेरिकी बनना चाहते हैं,न ही डेनिश,हम कलालिट (ग्रीनलैंडर्स) हैं। अमेरिकियों और उनके नेताओं को यह समझना चाहिए कि ग्रीनलैंड के लोग अपनी पहचान और अपने भविष्य को खुद तय करेंगे।”
इस पूरी स्थिति में यह स्पष्ट होता है कि ग्रीनलैंड के लोग अपनी स्वतंत्रता और स्वायत्तता को महत्व देते हैं और वे अपने भविष्य के बारे में बाहरी हस्तक्षेप को नहीं चाहते। डेनमार्क और ग्रीनलैंड दोनों का यह मानना है कि ग्रीनलैंड की जनता को अपने भविष्य का निर्णय लेने का पूरा अधिकार है और वे किसी बाहरी देश के साथ अपने संबंधों को खुद तय करने के लिए स्वतंत्र हैं।
यह घटना अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ प्रस्तुत करती है, जहाँ एक शक्तिशाली देश के नेता द्वारा किया गया प्रस्ताव अन्य देशों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। ट्रंप के विचारों और ग्रीनलैंड और डेनमार्क की प्रतिक्रिया ने यह साबित कर दिया कि बड़े देशों की राजनीति में छोटे देशों के अधिकारों और उनकी स्वायत्तता की अहमियत बढ़ रही है। ग्रीनलैंड का मामला यह दिखाता है कि छोटे देशों को अपनी पहचान और आत्मनिर्भरता बनाए रखने का पूरा अधिकार है और वे किसी भी बाहरी दबाव के बिना अपने भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
डेनमार्क और ग्रीनलैंड की सरकारों की तरफ से यह संदेश साफ है कि ग्रीनलैंड का भविष्य ग्रीनलैंड के लोगों का ही निर्णय होगा और वह किसी भी बाहरी ताकत या राष्ट्र के निर्णय से प्रभावित नहीं होगा।