न्यूयॉर्क,8 अप्रैल (युआईटीवी)- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन को चेतावनी दी है कि यदि वह 8 अप्रैल 2025 तक अपने 34 प्रतिशत टैरिफ वृद्धि को वापस नहीं लेता है,तो अमेरिका 9 अप्रैल से चीन पर 50 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाएगा। यह घोषणा ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर की। उनके इस कदम से दोनों देशों के बीच व्यापार विवाद और भी गहरा सकता है,क्योंकि इसमें सभी टैरिफों के कुल मूल्य में 104 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है,जो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन सकता है।
यह घोषणा चीन के उस निर्णय के जवाब में आई है,जिसमें उसने अमेरिकी आयात पर 34 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की थी। ट्रंप ने कहा कि यदि चीन अपने इस निर्णय को वापस नहीं लेता,तो अमेरिका 9 अप्रैल से 50 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लागू करेगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे बीजिंग के साथ किसी भी तरह की शुल्कों पर बातचीत को समाप्त कर देंगे। उनका मानना है कि इन टैरिफों का उद्देश्य चीन से अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना और अमेरिका के लिए व्यापारिक परिस्थितियों को समान बनाना है।
ट्रंप ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा, “हम इस पर कोई विचार नहीं कर रहे हैं। हम चीन के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे और यह सिर्फ शुरुआत है।” उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस स्थिति में कोई आपत्ति नहीं है,क्योंकि वे अंत में एक “खूबसूरत तस्वीर” देख सकते हैं,यानी अमेरिका को व्यापारिक रूप से बेहतर स्थिति में ला सकते हैं।
ट्रंप की धमकी के बाद,अमेरिकी शेयर बाजारों ने कुछ समय के लिए अपनी गिरावट को रोक लिया था। विशेष रूप से,नैस्डैक ने सोमवार को 0.1 प्रतिशत की मामूली बढ़त हासिल की,जबकि एसएंडपी इंडेक्स में 0.23 प्रतिशत की गिरावट आई। पहले कुछ समय के लिए ऐसा महसूस हुआ था कि व्यापारिक टैरिफों पर 90 दिनों की रोक लगने वाली है और एसएंडपी में 3.4 प्रतिशत की बढ़त देखने को मिली थी,लेकिन इसे व्हाइट हाउस ने खारिज कर दिया,जिसके बाद एसएंडपी में फिर से गिरावट आई।
ट्रंप ने इस मामले पर कहा, “हम बहुत से देशों के साथ जबरदस्त प्रगति कर रहे हैं।” उनका मानना है कि जिन देशों ने अमेरिका का फायदा उठाया है,वे अब बातचीत की मेज़ पर आ रहे हैं और अमेरिका के साथ व्यापारिक सुधारों पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा के साथ फोन पर बातचीत के बाद यह बताया कि टोक्यो बातचीत के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजने की योजना बना रहा है। इसके अलावा,भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ भी पारस्परिक टैरिफ और व्यापार संबंधों पर चर्चा की गई।
यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने अमेरिका को एक “शून्य के बदले शून्य” का सौदा पेश किया,जिसमें औद्योगिक सामानों,जैसे कारों पर टैरिफ खत्म करने की पेशकश की गई थी। उन्होंने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट किया,जिसमें उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ हमेशा एक अच्छे सौदे के लिए तैयार है,लेकिन साथ ही यह भी चेतावनी दी कि वे व्यापार में बदलावों से होने वाले अप्रत्यक्ष प्रभावों से बचने के लिए जवाबी उपायों को लागू करने के लिए तैयार हैं।
रिपोर्टों के मुताबिक,यूरोपीय संघ अपने स्वयं के पारस्परिक टैरिफ को दो चरणों में लागू करेगा – एक अगले सप्ताह और दूसरा मई में। यह टैरिफ यूरोपीय संघ के व्यापारिक दृष्टिकोण को अमेरिकी व्यापारिक नीति के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास हैं।
रिपब्लिकन पार्टी के दो प्रमुख सीनेटरों,माइक ली और रॉन जॉनसन ने ट्रंप से अपील की है कि वे यूरोपीय संघ और अन्य देशों से आने वाली “शून्य के बदले शून्य” डील को स्वीकार करें। उनका मानना है कि यह सौदा अमेरिका के लिए फायदेमंद हो सकता है और व्यापार में संतुलन लाने में मदद कर सकता है। हालाँकि,इससे पहले ट्रंप ने अन्य देशों को जवाबी व्यापारिक उपायों के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी है।
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ट्रंप के साथ एक बैठक के दौरान यह कहा कि इजरायल अमेरिका के साथ अपने व्यापार घाटे को खत्म करेगा। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि यह व्यापारिक मॉडल अन्य देशों के लिए एक उदाहरण हो सकता है,जिससे वे भी अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक घाटे को कम कर सकते हैं। हालाँकि,इस दौरान इजरायल के लिए कोई विशेष टैरिफ रियायत की घोषणा नहीं की गई।
डोनाल्ड ट्रंप की धमकी और चीन के खिलाफ व्यापारिक कदमों से यह स्पष्ट हो गया है कि उनका व्यापारिक दृष्टिकोण अमेरिका के लाभ के लिए किसी भी कीमत पर होगा। ट्रंप का लक्ष्य व्यापार में अमेरिका के घाटे को कम करना और समान व्यापारिक शर्तों पर अन्य देशों से बातचीत करना है। उनका यह कदम अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नीति में एक नया मोड़ ला सकता है,जिससे न केवल अमेरिका,बल्कि अन्य देशों को भी व्यापारिक सुधारों की दिशा में कदम उठाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। हालाँकि,यह भी सच है कि इन कदमों के वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं,खासकर उन देशों पर जो अमेरिकी व्यापार से प्रभावित होते हैं।