नई दिल्ली, 26 सितम्बर (युआईटीवी/आईएएनएस)| संसद के दोनों सदनों से तीन अहम कृषि विधेयकों के विरोध में विपक्ष में शामिल राजनीतिक दलों समेत किसान संगठनों द्वारा शुक्रवार को आहूत भारत बंद का सबसे ज्यादा असर उत्तर भारत, खासतौर से पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में देखा गया। हालांकि, अन्य राज्यों में भी विपक्षी दलों और किसान संगठनों ने जगह-जगह प्रदर्शन किया। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) का दावा है कि भारत बंद के दौरान शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा पूरी तरह बंद रहे। दोनों राज्यों में भाकियू के अलावा कई अन्य किसान संगठनों और राजनीतिक दलों ने भी बंद का समर्थन दिया था। पंजाब और हरियाणा में कांग्रेस, शिरोमणि अकाली से जुड़े किसान संगठनों ने विधेयकों का विरोध किया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी कई जगहों पर किसानों ने विधेयक के विरोध में प्रदर्शन किया। नोएडा में दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर भारतीय किसान संगठन से जुड़े लोगों ने प्रदर्शन किया।
उधर, बिहार में प्रमुख विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने विधेयक के विरोध में हो रहे प्रदर्शन में हिस्सा लिया। कृषि विधेयक पर विरोध प्रदर्शन महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड में भी जगह-जगह किसान संगठनों ने विधेयक के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया। महाराष्ट्र में कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, अखिल भारतीय किसान सभा और स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने विधेयक के विरोध में हुए प्रदर्शन में हिस्सा लिया। मुंबई, ठाणे, पालघर, पुणे, कोल्हापुर, नासिक, जालना समेत कई जगहों पर किसानों ने प्रदर्शन किया।
मध्यप्रदेश के मंदसौर, नीमच, रतलाम, हरदा, समेत कई जगहों पर किसानों ने विधेयक के विरोध में प्रदर्शन किया।
विरोध-प्रदर्शन में शामिल किसान संगठनों के नेताओं ने बताया कि नए कानून से कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) द्वारा संचालित मंडियां समाप्त हो जाएंगी, जिससे किसानों को अपने उत्पाद बेचने में मशक्कत करनी पड़ेगी। उनके मन में फसलों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर होने को लेकर भी आशंका बनी हुई है। पंजाब और हरियाणा में मुख्य खरीफ फसल धान और रबी फसल गेहूं की एमएसपी पर व्यापक पैमाने पर खरीद होती है और दोनों राज्यों में एपीएमसी की व्यवस्था अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा मजबूत है। यही वजह है कि इन दोनों राज्यों में कृषि विधेयकों का ज्यादा विरोध हो रहा है।
हरियाणा में भाकियू के प्रदेश अध्यक्ष गुराम सिंह ने कहा इन विधेयकों के जरिए इन्होंने (केंद्र सरकार) मंडियां तोड़ने और एमएसपी समाप्त करने का ढांचा खड़ा कर रखा है। उन्होंने कहा कि एमएसपी पर अनाज नहीं बिकने से किसान तबाह हो जाएंगे।
हालांकि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बार-बार दोहराया कि किसानों से एमएसपी पर फसलों की खरीद पूर्ववत जारी रहेगी और इन विधेयकों में किसानों को एपीएमसी की परिधि के बाहर अपने उत्पाद बेचने को विकल्प दिया गया है, जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को उनके उत्पादों का लाभकारी दाम मिलेगा।
संसद के मानसून सत्र में लाए गए कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक-2020 को संसद की मंजूरी मिल चुकी है। ये तीनों विधेयक कोरोना काल में पांच जून को घोषित तीन अध्यादेशों की जगह लेंगे।
पंजाब में भाकियू के प्रदेश अध्यक्ष अजमेर सिंह लखोवाल ने आईएएनएस से कहा कि केंद्र सरकार अगर किसानों के हितों में सोचती तो विधेयक में सभी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी का प्रावधान किया जाता। किसानों के किसी भी उत्पाद (जिनके लिए एमएमपी की घोषणा की जाती है) की खरीद एमएसपी से कम भाव पर न हो। उन्होंने कहा कि विधेयक में कॉरपोरेट फॉमिर्ंग के जो प्रावधान किए गए हैं, उससे खेती में कॉरपोरेट का दखल बढ़ेगा और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा मिलेगा।