बदर खान सूरी

अमेरिकी जज ने भारतीय शोधकर्ता के निर्वासन पर लगाई रोक, हमास का समर्थन करने का है आरोप

न्यूयॉर्क,21 मार्च (युआईटीवी)- अमेरिका के एक जज ने भारतीय शोधकर्ता बदर खान सूरी के निर्वासन पर रोक लगा दी है,जिन पर हमास का समर्थन करने का आरोप था। भारतीय मूल के सूरी,जो एक शिक्षाविद हैं,को अमेरिकी आव्रजन अधिकारियों ने उस समय हिरासत में लिया,जब उनके छात्र वीजा को रद्द कर दिया गया था। उनके खिलाफ आरोप यह हैं कि वे हमास के समर्थक हैं और सोशल मीडिया पर यहूदी विरोधी भावना को बढ़ावा देते हैं। इस मामले में,न्यायाधीश पेट्रीसिया टोलिवर गिल्स ने गुरुवार को आदेश दिया कि सूरी को अदालत के आदेश के बिना निर्वासित नहीं किया जा सकता और उन्हें लुइसियाना के हिरासत केंद्र से बाहर नहीं निकाला जा सकता।

सूरी की शैक्षिक पृष्ठभूमि भी बहुत प्रतिष्ठित रही है। उन्होंने नई दिल्ली के जामिया मिलिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की है और वाशिंगटन में स्थित जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में पोस्ट-डॉक्टोरल फेलो थे। वहाँ उन्होंने दक्षिण एशिया में बहुसंख्यकवाद और अल्पसंख्यक अधिकारों पर एक कोर्स भी कराया था। उनका अकादमिक कार्य समाज में समानता और मानवाधिकारों के लिए खड़ा था,लेकिन उन्हें हमास का समर्थन करने के आरोप में घेरा गया।

इस मामले में होमलैंड सुरक्षा सहायक सचिव ट्रिसिया मैकलॉघलिन ने सूरी पर हमास का प्रचार करने और सोशल मीडिया पर यहूदी विरोधी विचारों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। इसके अलावा,उनका यह भी कहना है कि सूरी के हमास के वरिष्ठ सलाहकार से घनिष्ठ संबंध हैं,जो संदिग्ध आतंकवादी माने जाते हैं। हालाँकि,सूरी के वकीलों ने अदालत में यह दावा किया कि सूरी को उनके परिवारिक रिश्तों के कारण निशाना बनाया जा रहा है। उनका कहना था कि सूरी की शादी एक फिलिस्तीनी-अमेरिकी महिला से हुई है,जो फिलिस्तीनी मुद्दों के समर्थन में काम करती हैं और यह केवल उनके पारिवारिक संबंधों के कारण हो रहा है। वकील ने यह भी तर्क दिया कि सूरी ने केवल अमेरिकी विदेश नीति की आलोचना की थी,जो इजरायल के पक्ष में थी और उन्हें इस आधार पर निशाना बनाना सही नहीं है।

जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय ने भी सूरी के समर्थन में बयान जारी किया है। विश्वविद्यालय ने कहा कि उन्हें सूरी के किसी अवैध गतिविधि में शामिल होने की कोई जानकारी नहीं है और न ही हिरासत में लेने का कोई स्पष्ट कारण है। विश्वविद्यालय के अनुसार, सूरी का शैक्षिक काम और उनके विचार पूरी तरह से अकादमिक थे और वे विश्वविद्यालय में पढ़ाने के दौरान किसी भी प्रकार की अवैध गतिविधियों में शामिल नहीं थे।

सूरी की पत्नी मफेज़ सालेह,जो एक अमेरिकी नागरिक हैं,ने जामिया मिलिया विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री प्राप्त की है और कतर दूतावास में काम कर चुकी हैं। इसके अतिरिक्त,उन्होंने मिडिल ईस्ट मॉनिटर और अल जजीरा जैसे मीडिया नेटवर्क के लिए भी लिखा है। मफेज़ का कार्य क्षेत्र मध्य पूर्व से संबंधित है और उन्होंने गाजा में विदेश मंत्रालय के लिए भी काम किया है। उनकी गतिविधियाँ और सूरी की शादी के कारण भी अमेरिकी अधिकारियों द्वारा उन्हें शक की निगाह से देखा गया।

इस मामले में सूरी के वकील ने यह भी बताया कि सोमवार को होमलैंड सुरक्षा एजेंटों ने सूरी को वाशिंगटन उपनगर में उनके घर के बाहर रोक लिया था और ढके चेहरे के साथ उन्हें हिरासत में लिया था। इसके बाद,उन्हें वर्जीनिया के फार्मविले में एक हिरासत केंद्र में ले जाया गया और फिर लुइसियाना भेज दिया गया। सूरी के वकील ने अदालत में यह माँग की है कि उनकी हिरासत को जारी रखने की बजाय उन्हें उनके घर के नजदीक किसी सुविधा केंद्र में स्थानांतरित किया जाए,ताकि मामले की सुनवाई जारी रहे और वे अदालत के आदेश का पालन कर सकें।

यह मामला एक बड़े विवाद का रूप ले सकता है,क्योंकि यह दिखाता है कि किस तरह से व्यक्तिगत विचार और पारिवारिक संबंध अमेरिकी आव्रजन नीति के तहत शक के दायरे में आ सकते हैं। कुछ रिपोर्टों में यह भी बताया गया है कि सूरी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के अभियान के विरोधी थे और उनके खिलाफ कई विश्वविद्यालयों में फिलिस्तीनी समर्थक विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा रहे थे। कुछ मामलों में,ये विरोध प्रदर्शन यहूदी-विरोधी और हमास के समर्थन में बदल गए थे,जिसके कारण उन्हें और अन्य लोगों को अमेरिकी अधिकारियों द्वारा निगरानी में लिया गया।

सूरी के मामले में,उन्हें अपनी अकादमिक स्वतंत्रता और विचार की स्वतंत्रता की रक्षा करने का पूरा अधिकार है और अदालत ने यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं कि उनके निर्वासन पर कोई निर्णय केवल न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से हो। इस मामले की सुनवाई के दौरान,अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जब तक सूरी के खिलाफ कोई ठोस आरोप साबित नहीं हो जाते,तब तक उन्हें निर्वासित नहीं किया जा सकता।

यह घटना अमेरिकी आव्रजन प्रणाली में और भी महत्वपूर्ण सवाल उठाती है,खासकर जब यह बात आती है कि किसी व्यक्ति के निजी विचार और उनके पारिवारिक संबंधों को किन परिस्थितियों में कानूनी रूप से चुनौती दी जा सकती है। इस मामले को लेकर दोनों पक्षों के तर्क बहुत मजबूत हैं और यह केवल एक व्यक्तिगत मामला नहीं बल्कि एक बड़ा कानूनी और राजनीतिक विवाद बन सकता है,जो अमेरिकन नागरिक अधिकारों और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक संबंधों से भी जुड़ा हुआ है।