वाशिंगटन,8 अप्रैल (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण बयान दिया,जिसमें उन्होंने कहा कि अमेरिका और ईरान के बीच सीधी बातचीत चल रही है और पहली बैठक शनिवार को होने वाली है,जो लगभग शीर्ष स्तर पर होगी। ट्रंप ने यह भी कहा कि यदि इन वार्ताओं में सफलता नहीं मिलती है,तो ईरान के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा हो सकता है,क्योंकि उन्हें परमाणु हथियार रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह बयान ट्रंप द्वारा ईरान के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच दिया गया और इसे अमेरिकी विदेश नीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है।
ट्रंप का यह बयान उस समय आया,जब उन्होंने पहली बार ईरान के साथ वार्ता की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सार्वजनिक निमंत्रण दिया था,जिसे ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई ने अस्वीकार कर दिया था। हालाँकि,अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह स्पष्ट किया कि वार्ता उच्चतम स्तर पर होगी,लेकिन उन्होंने इसके स्थान या इसमें शामिल होने वाले अधिकारियों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। इसके बावजूद, ट्रंप ने यह कहा कि यह वार्ता “बहुत शीर्ष” स्तर पर और “लगभग उच्चतम स्तर” पर होगी और उन्हें विश्वास था कि यह वार्ता अमेरिकी और इजरायल दोनों के लिए महत्वपूर्ण होगी।
ट्रंप की यह घोषणा उनके “अधिकतम दबाव” की नीति को आगे बढ़ाने की दिशा में एक नया कदम है,जिसे उन्होंने ईरान के परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय गतिविधियों के खिलाफ अपनाया है। यह नीति उस समय शुरू हुई थी,जब उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में 2015 में किए गए जेसीपीओए (संयुक्त व्यापक कार्य योजना) को रद्द कर दिया था। जेसीपीओए एक महत्वपूर्ण समझौता था,जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों (अमेरिका, यूके, फ्रांस, रूस, और चीन) तथा जर्मनी और ईरान के साथ मिलकर तैयार किया था। इस समझौते के तहत,ईरान ने अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को सीमित किया था, बदले में उसे संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों से राहत दी गई थी।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने घोषणा में कहा कि, “ईरान से हमारी सीधी बातचीत चल रही है और यह बातचीत शनिवार से शुरू होगी। हमारी एक बहुत बड़ी बैठक है और हम देखेंगे कि क्या हो सकता है। मुझे लगता है कि हर कोई सहमत है कि एक समझौता करना,स्पष्ट कार्रवाई करने से बेहतर होगा। स्पष्ट कार्रवाई वह नहीं है,जिसमें मैं शामिल होना चाहता हूँ या सच कहूँ तो,इजरायल भी इसमें शामिल नहीं होना चाहता,यदि वे इससे बच सकते हैं।”
यहाँ “स्पष्ट कार्रवाई” का मतलब था कि यदि बातचीत विफल हो जाती है,तो ट्रंप सैन्य विकल्प का उपयोग करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी कहा, “यदि ईरान के साथ बातचीत सफल नहीं होती है,तो मुझे लगता है कि ईरान बहुत खतरे में पड़ने वाला है। क्योंकि उनके पास परमाणु हथियार नहीं हो सकते। आप जानते हैं,यह कोई जटिल फ़ॉर्मूला नहीं है। ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं हो सकता। बस इतना ही है। आप इसे अभी तैयार नहीं कर सकते।”
इस बयान में ट्रंप ने ईरान के परमाणु हथियारों के खिलाफ अपनी दृढ़ स्थिति को स्पष्ट किया और कहा कि यदि ईरान परमाणु हथियार हासिल करने में सफल होता है,तो यह न केवल ईरान के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए खतरा बन सकता है। ट्रंप ने इसके साथ ही यह भी कहा कि ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं हो सकते और यह उनकी नीति का केंद्रीय बिंदु है।
ट्रंप ने अपने बयान में ईरान के परमाणु हथियारों के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दी कि वह किस तरह के परमाणु हथियारों के बारे में बात कर रहे हैं,जिनके बारे में उनका मानना है कि ईरान को उनसे बचना चाहिए। हालाँकि,यह स्पष्ट है कि ट्रंप का इशारा उन देशों की ओर था जिनके पास परमाणु हथियार हैं और जिन्हें वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखा जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इन देशों की पहचान नहीं की और न ही उन्होंने अपनी योजनाओं के बारे में विस्तार से बताया,लेकिन यह माना जाता है कि वर्तमान में दुनिया में अमेरिका,रूस,फ्रांस,यूनाइटेड किंगडम,चीन, भारत,पाकिस्तान,इजरायल और उत्तर कोरिया वे देश हैं जिनके पास परमाणु हथियार हैं।
ट्रंप की यह सैन्य विकल्प की धमकी एक गंभीर कदम हो सकता है,क्योंकि इससे न केवल ईरान के साथ वार्ता की दिशा प्रभावित हो सकती है,बल्कि इससे पूरी दुनिया में तनाव भी बढ़ सकता है। यदि ईरान और अमेरिका के बीच वार्ता विफल होती है, तो ट्रंप की यह धमकी परमाणु संघर्ष की ओर इशारा कर सकती है,जो कि वैश्विक स्तर पर गंभीर परिणाम ला सकता है। इस स्थिति में,अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को यह सुनिश्चित करना होगा कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर कड़ी निगरानी रहे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ईरान किसी भी स्थिति में परमाणु हथियारों का निर्माण न करे।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह से ईरान के साथ सीधी बातचीत की शुरुआत की है,वह वैश्विक सुरक्षा के संदर्भ में महत्वपूर्ण संकेत देता है। यह बातचीत न केवल ईरान और अमेरिका के रिश्तों को प्रभावित करेगी,बल्कि इससे पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र और विश्व के सुरक्षा परिप्रेक्ष्य पर भी असर पड़ेगा। यदि यह वार्ता सफल होती है, तो यह परमाणु हथियारों के गैर-प्रसार और क्षेत्रीय शांति के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है,लेकिन अगर यह वार्ता विफल होती है,तो ईरान और अमेरिका के बीच सैन्य टकराव की संभावना बढ़ सकती है,जो पूरे क्षेत्र को अस्थिर कर सकता है।