न्यूयॉर्क,9 अप्रैल (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में चेतावनी दी है कि फार्मास्यूटिकल्स को दी गई रेसिप्रोकल टैरिफ से छूट जल्द ही समाप्त हो जाएगी। भारत अमेरिका को बड़ी मात्रा में फार्मास्यूटिकल्स का निर्यात करता है और ट्रंप का यह बयान ऐसे समय में आया है,जब अमेरिका द्वारा लगाए गए रेसिप्रोकल टैरिफ बुधवार से प्रभावी हो गए हैं। ट्रंप ने मंगलवार रात को वाशिंगटन में नेशनल रिपब्लिकन कांग्रेसनल कमेटी के डिनर में अपने भाषण के दौरान यह कहा कि, “हम बहुत जल्द फार्मास्यूटिकल्स पर एक बड़ा टैरिफ लगाने की घोषणा करने जा रहे हैं।”
अमेरिका द्वारा भारत पर 27 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने का ऐलान पिछले बुधवार को किया गया था। ट्रंप ने यह भी कहा कि जब फार्मा कंपनियों को इस टैरिफ की जानकारी मिलेगी,तो वे चीन और अन्य देशों को छोड़कर अपने ज्यादा उत्पादन को अमेरिका में बेचने का प्रयास करेंगी। उनका यह भी कहना था कि “टैरिफ के बाद सभी फार्मा कंपनियाँ पूरे देश के अगले हिस्सों में प्लांट खोलेंगी।”
यह बयान उस समय आया है,जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने पिछले सप्ताह रेसिप्रोकल टैरिफ की घोषणा की थी। उन्होंने फार्मास्यूटिकल्स,कॉपर,सेमीकंडक्टर,लकड़ी, बुलियन,ऊर्जा और कुछ मिनरल्स को टैरिफ से छूट दी थी,क्योंकि ये अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने गए थे। रेसिप्रोकल टैरिफ से फार्मास्यूटिकल्स को छूट इसलिए दी गई थी क्योंकि भारत से आयातित जेनेरिक दवाएँ अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं,क्योंकि ये दवाएँ अमेरिका में स्वास्थ्य सेवाओं की लागत को कम करने में मदद करती हैं,जो दुनिया में सबसे महँगे हेल्थ सिस्टम्स में से एक है।
भारत अपनी फार्मास्यूटिकल्स का लगभग 31.5 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका को निर्यात करता है और दोनों ही देशों के लिए यह व्यापार अत्यंत लाभकारी है। 2022 में,अमेरिका में दिए गए दस में से चार प्रिस्क्रिप्शन भारतीय कंपनियों के थे,जैसा कि हेल्थकेयर डेटा और एनालिटिक्स कंपनी आईक्यूवीआईए ने बताया। अमेरिकी बाजार में भारतीय फार्मास्यूटिकल्स की बड़ी हिस्सेदारी होने के कारण,फार्मा क्षेत्र में कोई भी बड़ा बदलाव दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
ट्रंप का यह बयान और उनके द्वारा की गई चेतावनी अमेरिकी और भारतीय फार्मा कंपनियों के लिए एक संकेत है कि उन्हें आने वाले दिनों में अमेरिकी बाजार में दवाओं की कीमतों पर प्रभाव डालने वाले नए शुल्क का सामना करना पड़ सकता है। इससे भारतीय कंपनियों को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं और उत्पादन नीति में बदलाव करना पड़ सकता है और अमेरिका में उनके उत्पादों की कीमतों में वृद्धि हो सकती है,जिसका प्रभाव अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।
अमेरिका द्वारा रेसिप्रोकल टैरिफ लागू करने के बाद,यह व्यापारिक विवाद और वैश्विक व्यापार युद्ध की स्थिति पैदा हो गई है। पिछले सप्ताह,चीन ने 34 प्रतिशत टैरिफ की घोषणा की थी,जिसके जवाब में अमेरिका ने चीन से आयात पर अतिरिक्त 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने का ऐलान किया। यदि यह टैरिफ लागू होता है,तो चीनी आयात पर अमेरिकी टैरिफ 104 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा,जो व्यापारिक रिश्तों को और जटिल बना सकता है।
यह व्यापार युद्ध मंदी की आशंकाओं को और बढ़ा रहा है,क्योंकि विश्व व्यापार में अस्थिरता का कारण बनने वाली इस स्थिति से वैश्विक आर्थिक वृद्धि पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। चीन और अमेरिका के बीच जारी व्यापारिक विवाद का असर सिर्फ दोनों देशों तक सीमित नहीं है,बल्कि वैश्विक व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाओं को भी प्रभावित कर सकता है।
इस संदर्भ में,भारत को भी अपनी व्यापारिक रणनीतियों में समायोजन करना पड़ सकता है। भारतीय फार्मास्यूटिकल्स उद्योग,जो अमेरिका को दवाओं का बड़ा निर्यातक है,अब अमेरिकी बाजार में आने वाले संभावित टैरिफ के चलते नए रास्ते तलाशने पर विचार कर रहा होगा। भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर काम चल रहा है,ताकि टैरिफ के प्रभाव को कम किया जा सके। इस समझौते से भारतीय कंपनियों को कुछ राहत मिल सकती है,लेकिन इसके लिए दोनों देशों के बीच सामंजस्यपूर्ण बातचीत की आवश्यकता होगी।
अमेरिकी राष्ट्रपति के इस बयान और ट्रेड वार के बढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि वैश्विक व्यापार प्रणाली में अस्थिरता बढ़ रही है। अमेरिकी व्यापार नीति का उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना और विदेशी आयात पर निर्भरता को कम करना है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विघटन हो सकता है और व्यापारिक रिश्तों में तनाव बढ़ सकता है।
भारत और अन्य देशों के लिए यह समय अपनी रणनीतियों को फिर से विचारने और संभावित आर्थिक प्रभावों से निपटने की दिशा में काम करने का है। फार्मास्यूटिकल्स, जो अमेरिकी बाजार में भारतीय उद्योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं,अब नए आर्थिक वातावरण में अपनी स्थिति को बनाए रखने के लिए रणनीतिक कदम उठा सकते हैं। अमेरिकी व्यापार नीति में बदलावों के बावजूद,भारतीय कंपनियाँ अपने उत्पादों की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाकर वैश्विक बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास करेंगी।