नुउक (ग्रीनलैंड),30 मार्च (युआईटीवी)- अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के ग्रीनलैंड को लेकर दिए गए हालिया बयान और कार्रवाई के खिलाफ डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन और शहर आरहूस में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने विरोध प्रदर्शन किया। यह विरोध प्रदर्शन शनिवार को हुआ,जो अमेरिकी उपराष्ट्रपति और उनके अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के ग्रीनलैंड के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित पिटुफिक स्पेस बेस (पूर्व में थुले बेस) दौरे के एक दिन बाद हुआ।
इस दौरान,वेंस ने डेनमार्क पर ग्रीनलैंड के सुरक्षा मुद्दे या वहाँ के लोगों की भलाई को लेकर पर्याप्त कदम न उठाने का आरोप लगाया था। उनका कहना था कि डेनमार्क को ग्रीनलैंड की सुरक्षा और आर्थिक स्थिति को लेकर सख्त कदम उठाने चाहिए और अमेरिका को इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। वेंस का यह बयान ग्रीनलैंड की स्वायत्तता और डेनमार्क की विदेश नीति पर सवाल उठाने वाला था, जिसने विवाद को और बढ़ा दिया।
डेनमार्क के एक प्रमुख राजनेता मोगेंस लिक्केटोफ्ट ने कोपेनहेगन में प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कहा, “हमें अपने मामले को संयुक्त राष्ट्र में लड़ना चाहिए, जहाँ यह निश्चित है कि अधिकांश देशों द्वारा ग्रीनलैंड के खिलाफ अमेरिकी आक्रमण की निंदा की जाएगी और फिर हमें उन 70 प्रतिशत अमेरिकियों से समर्थन की अपील करनी चाहिए,जो ग्रीनलैंड को अधिग्रहित करने के खिलाफ हैं।” मोगेंस लिक्केटोफ्ट पूर्व विदेश मंत्री और संयुक्त राष्ट्र महासभा के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं। आगे उन्होंने हार नहीं माननी की बात कही। उनका यह बयान अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के बयानों को न केवल आलोचनात्मक रूप से देखने का था,बल्कि यह भी प्रदर्शित करता था कि डेनमार्क के लोग ग्रीनलैंड की स्वायत्तता की पूरी तरह से रक्षा करने के लिए तैयार हैं। प्रदर्शनकारियों ने उनकी बातों से प्रेरित होकर ग्रीनलैंडिक और डेनिश में नारे लगाए,जिनमें “ग्रीनलैंड बिकाऊ नहीं है” जैसे नारे गूँज रहे थे।
डेनमार्क के विदेश मंत्री लार्स लोके रासमुसेन ने भी ट्रंप प्रशासन की आलोचना की, खासकर उनके “स्वर” को लेकर,जब उन्होंने डेनमार्क और ग्रीनलैंड की आलोचना की थी। रासमुसेन ने कहा, “कई आरोप लगाए गए हैं और हम आलोचना के लिए खुले हैं,लेकिन मैं पूरी तरह से ईमानदार रहकर कहूँगा,हम इस स्वर को पसंद नहीं करते, जिस तरह से इसे व्यक्त किया गया है। यह आपके करीबी सहयोगियों से इस तरह की बात नहीं की जाती और मैं अभी भी डेनमार्क और अमेरिका को करीबी सहयोगी मानता हूँ।” रासमुसेन ने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच लंबे समय से सहयोग का इतिहास रहा है और यह इस तरह की आलोचनाओं से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
रासमुसेन ने 1951 में डेनमार्क और अमेरिका के बीच हुए एक रक्षा समझौते का भी अपने वीडियो संदेश में याद दिलाते हुए कहा, “अमेरिका को इस समझौते के तहत ग्रीनलैंड में अधिक मजबूत सैन्य उपस्थिति बनाने का पर्याप्त अवसर मिलता है,यदि यही आपकी इच्छा है,तो हम इस पर चर्चा कर सकते हैं।” रासमुसेन ने यह भी बताया कि डेनमार्क ने आर्कटिक सुरक्षा में अपने निवेश को बढ़ाया है। जनवरी में,डेनमार्क ने आर्कटिक सुरक्षा के लिए 14.6 अरब डेनिश क्रोनर (1.9 अरब यूरो) का निवेश करने का ऐलान किया था,जिसमें तीन नए नौसेना पोत,लंबी दूरी के ड्रोन और उपग्रह शामिल थे। यह निवेश डेनमार्क की आर्कटिक क्षेत्र में सुरक्षा को और मजबूत करने की कोशिश को दर्शाता है।
इसके अतिरिक्त, आरहूस में भी प्रदर्शनकारियों ने अमेरिकी कार्रवाई के खिलाफ विरोध जताया और ग्रीनलैंड की स्वायत्तता के समर्थन में आवाज उठाई। ग्रीनलैंड, जो पहले डेनमार्क का उपनिवेश था,1953 में डेनमार्क के राज्य का हिस्सा बना था और 1979 में उसे होम रूल मिला,जिसके बाद उसकी स्वायत्तता बढ़ी, हालाँकि डेनमार्क अब भी उसकी विदेश नीति और रक्षा पर नियंत्रण बनाए रखता है। ग्रीनलैंड के लोग अपनी स्वायत्तता को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं और वे किसी भी विदेशी हस्तक्षेप को अस्वीकार करते हैं।
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने अपने पिटुफिक स्पेस बेस के दौरे के दौरान अमेरिकी सैनिकों से कहा कि ग्रीनलैंड की सुरक्षा में डेनमार्क ने “कम निवेश” किया है और कोपेनहेगन से अपनी नीति को बदलने की अपेक्षाएँ जताईं,क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ग्रीनलैंड को अधिग्रहित करने की धमकी देते रहे हैं। जेडी वेंस ने कहा, “हमारे पास ग्रीनलैंड की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थिति लेने का कोई विकल्प नहीं है और मुझे लगता है कि वे अंततः अमेरिका के साथ साझेदारी करेंगे। हम उन्हें अधिक सुरक्षित बना सकते हैं। हम सुरक्षा और आर्थिक दृष्टि से भी उनका काफी भला कर सकते हैं।” उनका यह बयान डेनमार्क के आंतरिक मामलों में अमेरिकी हस्तक्षेप की इच्छा को दर्शाता है,जो डेनमार्क के लिए संवेदनशील मुद्दा है।
इस विवाद के बीच, ग्रीनलैंड के भविष्य को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं,जहाँ एक ओर अमेरिका ग्रीनलैंड की सुरक्षा और आर्थिक भलाई की बात कर रहा है,वहीं दूसरी ओर डेनमार्क और ग्रीनलैंड के लोग अपनी स्वायत्तता की रक्षा के लिए डटे हुए हैं। यह संघर्ष केवल सुरक्षा या रक्षा का नहीं,बल्कि राष्ट्रीय स्वायत्तता और स्वतंत्रता का भी है। ग्रीनलैंड के लोग अपनी सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान को बनाए रखने के लिए किसी भी प्रकार के बाहरी दबाव का विरोध कर रहे हैं।
डेनमार्क और ग्रीनलैंड को अमेरिकी दबावों का सामना करना पड़ रहा है,जबकि वे अपने हितों और स्वायत्तता की रक्षा के लिए दृढ़ हैं। इन विरोध प्रदर्शनों और बयानों से यह स्पष्ट होता है कि ग्रीनलैंड का भविष्य अब केवल सैन्य सुरक्षा या आर्थिक मामलों से नहीं,बल्कि उसकी स्वायत्तता और राजनीतिक स्वतंत्रता से भी जुड़ा हुआ है।