नई दिल्ली/ढाका,10 अप्रैल (युआईटीवी)- भारत सरकार ने बांग्लादेश को दी जा रही ट्रांसशिपमेंट सुविधा को 8 अप्रैल 2025 से समाप्त करने का निर्णय लिया है। इसका कारण भारत के हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर “काफी भीड़भाड़” और इसके परिणामस्वरूप लॉजिस्टिक्स में हो रही देरी और उच्च लागत को बताया गया है,जो भारत के अपने निर्यात में बाधा उत्पन्न कर रहा था।
यह निर्णय भारत के वित्त मंत्रालय के तहत केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) द्वारा लिया गया,जिसने 8 अप्रैल को एक अधिसूचना जारी करते हुए 29 जून, 2020 के संशोधित सर्कुलर को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया।
ट्रांसशिपमेंट का अर्थ होता है — जब एक देश अपने निर्यात माल को किसी तीसरे देश के बंदरगाह, हवाई अड्डे या परिवहन मार्ग का उपयोग करते हुए किसी अन्य गंतव्य देश तक पहुँचाता है। यह सुविधा भारत ने जून 2020 में बांग्लादेश को दी थी, ताकि वह भारतीय सीमा शुल्क स्टेशनों के माध्यम से अपने माल को तीसरे देशों तक भेज सके।
इस व्यवस्था के तहत बांग्लादेश अपने निर्यात माल को भारत के हवाई अड्डों और बंदरगाहों के माध्यम से भेजता था,जिससे उसे लॉजिस्टिक रूप से दूरी और लागत में कमी मिलती थी। साथ ही,भारत को भी क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देने में मदद मिलती थी।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बुधवार को मीडिया से बात करते हुए स्पष्ट किया, “बांग्लादेश को दी गई ट्रांसशिपमेंट सुविधा के कारण हमारे हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर काफी भीड़भाड़ हो रही थी। इससे लॉजिस्टिक्स में देरी हो रही थी,लागत बढ़ रही थी और भारत के अपने निर्यात को नुकसान पहुँच रहा था।”
उन्होंने आगे कहा, “हमने यह निर्णय मजबूरी में लिया है और इसका उद्देश्य हमारे व्यापारिक ढाँचे को सुचारू बनाए रखना है। हालाँकि,यह सुविधा समाप्त करने के बावजूद,हम यह सुनिश्चित करेंगे कि नेपाल और भूटान जैसे लैंडलॉक देशों को होने वाला बांग्लादेशी निर्यात भारतीय सीमा के माध्यम से बाधित न हो।”
सीबीआईसी की अधिसूचना के अनुसार, “भारत में पहले से दाखिल किए गए कार्गो को पूर्व निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार भारतीय सीमा से बाहर जाने की अनुमति दी जाएगी,लेकिन भविष्य के लिए 29 जून, 2020 का सर्कुलर अब मान्य नहीं रहेगा।”
इसका मतलब यह है कि जिन कंटेनरों और माल को पहले ही भारत के बंदरगाहों और हवाई अड्डों में दाखिल कर लिया गया है,उन्हें पुरानी व्यवस्था के अनुसार बाहर भेजने की अनुमति दी जाएगी,लेकिन नई शिपमेंट अब इस ट्रांजिट सुविधा का लाभ नहीं उठा सकेंगी।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का मानना है कि यह कदम विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों का उल्लंघन कर सकता है। उन्होंने कहा, “डब्ल्यूटीओ के नियम लैंडलॉक देशों को ट्रांजिट की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। यदि बांग्लादेश इस नियम के दायरे में आता है,तो भारत का यह फैसला अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के विरुद्ध हो सकता है।”
हालाँकि,बांग्लादेश एक समुद्र-संपन्न देश है,लेकिन इसका बड़ा हिस्सा भारत से घिरा हुआ है और इसे कुछ मामलों में लैंडलॉक देशों जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है,विशेषकर जब बात सस्ता और त्वरित ट्रांजिट विकल्प चुनने की आती है।
ढाका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर सलीम रेहान ने अंतर्राष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत करते हुए कहा कि यह निर्णय ऐसे समय में आया है,जब बांग्लादेश को पहले ही अमेरिका के 37% रेसिप्रोकल टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने चेताया कि यह कदम बांग्लादेश की लॉजिस्टिक लागत को बढ़ा सकता है,जिससे उसकी निर्यात प्रतिस्पर्धा पर सीधा असर पड़ेगा।
रेहान के अनुसार, “बांग्लादेश पहले ही वैश्विक निर्यात बाजारों में चुनौती का सामना कर रहा है। ऐसे में अगर उसे अपने पारंपरिक ट्रांजिट विकल्प खोने पड़ते हैं,तो यह उसकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा को कमजोर कर सकता है।”
भारत द्वारा शुरू की गई ट्रांसशिपमेंट सुविधा क्षेत्रीय कनेक्टिविटी,व्यापार सहयोग और ट्रांजिट फ्रीडम को बढ़ावा देने की एक प्रमुख पहल थी। इसके माध्यम से भारत खुद को एक “ट्रांजिट कॉरिडोर” के रूप में स्थापित कर रहा था,जिससे दक्षिण एशियाई देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़े।
इस सुविधा के समाप्त होने से न केवल भारत-बांग्लादेश व्यापार पर असर पड़ेगा, बल्कि यह क्षेत्रीय सहयोग और एकीकृत लॉजिस्टिक्स नेटवर्क की दिशा में उठाए गए कदमों के लिए भी एक झटका माना जा रहा है।
भारत का यह फैसला निश्चित रूप से आंतरिक व्यापारिक दबावों और अवसंरचनात्मक सीमाओं की प्रतिक्रिया में लिया गया है,लेकिन इसका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार,क्षेत्रीय कूटनीति और भारत की ट्रांजिट रणनीति पर दीर्घकालिक असर पड़ सकता है। अब देखना होगा कि क्या यह कदम अस्थायी रहेगा या भारत कोई वैकल्पिक व्यवस्था सुझाकर क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में नया मार्ग खोलेगा।
इस बीच, बांग्लादेश को अपने निर्यात मार्गों के लिए वैकल्पिक लॉजिस्टिक्स विकल्पों की तलाश करनी होगी और भारत को भी अपने बंदरगाह बुनियादी ढाँचे में सुधार पर तेजी से ध्यान देना होगा,ताकि भविष्य में ऐसी व्यवस्थाएँ फिर से सुचारु रूप से चलाई जा सकें।