अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (तस्वीर क्रेडिट@Arya909050)

राष्ट्रपति ट्रंप के जन्मसिद्ध नागरिकता अधिकार समाप्त करने वाले आदेश पर मेरीलैंड की फेडरल जज ने लगाई रोक

वाशिंगटन,6 फरवरी (युआईटीवी)- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जनवरी 2025 में एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए थे,जिसका उद्देश्य अमेरिकी जन्मसिद्ध नागरिकता को समाप्त करना था। विशेष रूप से,यह आदेश उन बच्चों के लिए जन्मसिद्ध नागरिकता को नकारने का था,जिनके माता-पिता अवैध अप्रवासी हैं या जिनके पास अस्थायी वीजा हैं। ट्रंप का तर्क था कि 14वें संशोधन के तहत जन्मसिद्ध नागरिकता की परिभाषा में वे बच्चे शामिल नहीं होते,जो संयुक्त राज्य अमेरिका में तो पैदा होते हैं,लेकिन जिनके माता-पिता अमेरिकी नागरिक या स्थायी निवासी नहीं होते। इस आदेश का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि जिन बच्चों के माता-पिता वैध रूप से अमेरिका में नहीं हैं,उन्हें स्वचालित नागरिकता नहीं दी जाए।

हालाँकि,ट्रंप का यह आदेश जल्द ही कानूनी चुनौतियों का सामना करने लगा। 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने के बाद,उन्होंने यह आदेश जारी किया था और इसके तुरंत बाद 20 से अधिक राज्यों और कई नागरिक अधिकार समूहों ने इसे असंवैधानिक मानते हुए अदालतों में चुनौती दी। इसके बाद,23 जनवरी को अमेरिकी जिला न्यायालय के सीनियर जज जॉन कफनौर ने इस आदेश पर रोक लगाते हुए इसे अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया था। फिर, 6 फरवरी 2025 को, एक और महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय सामने आया,जब मैरीलैंड की एक संघीय न्यायाधीश,डेबोरा एल बोर्डमैन ने ट्रंप के कार्यकारी आदेश पर अनिश्चितकालीन रोक लगा दी।

मैरीलैंड के यूनाइटेड स्टेट्स डिस्ट्रिक्ट कोर्ट की जज डेबोरा एल बोर्डमैन ने यह आदेश नागरिक अधिकार समूहों द्वारा दायर याचिका के बाद जारी किया। इस आदेश का प्रभाव पूरे राष्ट्र में पड़ा,जिससे ट्रंप के आदेश को लागू करने की कोशिशों को रोक दिया गया। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया कि ट्रंप का यह कदम कानूनी रूप से उलझ सकता है,क्योंकि अदालतों ने इस पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

यह मामला उस समय और भी जटिल हो गया जब यह ज्ञात हुआ कि इस प्रकार के आदेश के खिलाफ कम-से-कम छह अन्य संघीय मुकदमे दायर किए गए हैं। इन मुकदमों को 22 डेमोक्रेटिक नेतृत्व वाले राज्यों और नागरिक अधिकार समूहों द्वारा दायर किया गया था। इन समूहों का कहना है कि ट्रंप का यह आदेश अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन का उल्लंघन करता है,जो यह स्पष्ट करता है कि अमेरिका में जन्म लेने वाले सभी बच्चों को जन्मसिद्ध नागरिकता मिलनी चाहिए,चाहे उनके माता-पिता किसी भी कानूनी स्थिति में क्यों न हों।

इस आदेश का तात्पर्य था कि जो बच्चे 19 फरवरी के बाद पैदा होंगे और उनके माता-पिता अमेरिकी नागरिक नहीं हैं,उन्हें नागरिकता से वंचित किया जा सकता है। ट्रंप का दावा था कि अमेरिका में जन्म लेने वाले ऐसे बच्चों को जन्मसिद्ध नागरिकता देने का कोई कानूनी आधार नहीं है,क्योंकि उनके माता-पिता अमेरिकी अधिकार क्षेत्र के अधीन नहीं होते। उनका कहना था कि अमेरिका में जन्म लेने वाले उन बच्चों की नागरिकता को नकारने का यह कदम केवल उनके व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षण के लिए आवश्यक है।

संविधान विशेषज्ञों और नागरिक अधिकार संगठनों का कहना है कि इस प्रकार के आदेश से 14वें संशोधन का उल्लंघन होगा,जिसे 1868 में पेश किया गया था और जिसने जन्मसिद्ध नागरिकता को अमेरिकी नागरिकता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया था। नागरिक अधिकार समूहों ने इसे लोकतंत्र और मानवाधिकारों के खिलाफ कदम बताया और अदालतों से इसे रद्द करने की माँग की।

अब तक,ट्रंप के इस आदेश के खिलाफ लगातार कानूनी लड़ाई चल रही है और अदालतों से मिल रहे आदेशों से यह स्पष्ट हो रहा है कि अमेरिकी न्यायपालिका इस आदेश को लेकर गहरी चिंता में है। इस बीच,देश भर में इस मामले को लेकर विभिन्न राजनीतिक और कानूनी प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं। जबकि ट्रंप के समर्थक इसे अमेरिका की सुरक्षा और अवैध अप्रवासियों पर नियंत्रण के लिए आवश्यक कदम मानते हैं,वहीं विपक्ष इसे संविधान और अमेरिकी मूल्यों के खिलाफ मानते हैं।

यह मामला एक गंभीर सवाल उठाता है कि अमेरिकी संविधान में दिए गए नागरिकता अधिकारों की सीमा क्या होनी चाहिए और क्या यह एक राष्ट्रपति के आदेश से बदलने योग्य है या केवल विधायिका और न्यायपालिका के माध्यम से ही इसे बदला जा सकता है। इस मामले की कानूनी लड़ाई अब आगे बढ़ने की संभावना है और इससे यह तय होगा कि भविष्य में जन्मसिद्ध नागरिकता के अधिकारों का क्या होगा।