मुंबई,29 मार्च (युआईटीवी)- बॉम्बे हाईकोर्ट में स्टैंड अप कॉमेडियन कुणाल कामरा के समर्थन में एक जनहित याचिका दायर की गई है। इस याचिका में संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत कामरा के चुटकुलों को मान्यता देने की माँग की गई है,जो वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। याचिका में यह दावा किया गया है कि कुणाल कामरा के चुटकुले किसी भी प्रकार की नफरत या दुश्मनी फैलाने के उद्देश्य से नहीं थे,बल्कि ये व्यंग्यात्मक आलोचना के रूप में थे,जो राजनीतिक आलोचना का हिस्सा हैं।
यह याचिका हर्षवर्धन खांडेकर नामक कानून के छात्र ने एडवोकेट आदित्य कटारनवरे के माध्यम से दायर की है। याचिका में कहा गया है कि कुणाल कामरा के चुटकुले संविधान द्वारा दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आते हैं और उन्हें एक अभिनेता के रूप में अपनी राय व्यक्त करने का पूरा अधिकार है। याचिका में यह भी दावा किया गया है कि कामरा के चुटकुले किसी भी प्रकार की हिंसा,नफरत या असहमति को बढ़ावा नहीं देते। इसके बजाय,ये समाज में हास्य और विचारों की विविधता को बढ़ावा देते हैं,जो लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता है।
कुणाल कामरा के चुटकुलों को लेकर विवाद तब शुरू हुआ था,जब उन्होंने कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स और चुटकुलों के माध्यम से सरकार और राजनीतिक नेताओं की आलोचना की थी। कामरा के इन चुटकुलों को लेकर कई जगहों पर विवाद खड़ा हुआ,जिसमें कुछ लोगों ने इसे अपमानजनक और आपत्तिजनक बताया। हालाँकि, कामरा ने इसे केवल एक व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत किया और यह स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य किसी की निंदा करना या असहमति को बढ़ावा देना नहीं था,बल्कि यह उनके व्यक्तिगत विचार थे।
याचिका में आगे कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 19 हर नागरिक को वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है और इस अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है,खासकर तब जब यह अधिकार लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करता है। याचिका में यह भी दावा किया गया कि कामरा के चुटकुले न केवल राजनीतिक आलोचना का हिस्सा थे,बल्कि समाज में स्वस्थ हास्य की संस्कृति को भी बढ़ावा देते हैं।
इसके अलावा,याचिका में एक अन्य विवाद को भी उठाया गया है। इसमें खार स्थित हैबिटेट स्टूडियो के खिलाफ की गई नगरपालिका की कार्रवाई को भी चुनौती दी गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि नगरपालिका ने स्टूडियो को कब्जे में लेकर एक पक्षपातपूर्ण निर्णय लिया है। यह दावा किया गया है कि नगरपालिका अधिकारियों ने अपने अधिकार का दुरुपयोग किया और यह कार्रवाई उनकी व्यक्तिगत राय या दबाव के तहत की गई। याचिका में कहा गया है कि इस निर्णय में कोई कानूनी आधार नहीं है और नगर निगम द्वारा इस प्रकार के निर्णयों को सही ठहराने की जिम्मेदारी उन अधिकारियों पर डाली जानी चाहिए,जिन्होंने यह फैसला लिया।
याचिका में माँग की गई है कि खार स्थित हैबिटेट स्टूडियो के खिलाफ की गई कार्रवाई को रद्द किया जाए और नगर निगम द्वारा इस प्रकार के चयनात्मक निर्णय को सही ठहराने की जिम्मेदारी उन अधिकारियों पर डाली जाए,जिन्होंने यह फैसला लिया। याचिका में यह भी कहा गया है कि नगर निगम को इस मामले की निष्पक्ष जाँच करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आगे से इस प्रकार की अवैध कार्रवाई न हो।
इस याचिका ने न केवल कुणाल कामरा के अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा की माँग की,बल्कि यह भी दिखाया कि किसी भी व्यक्ति के विचार और रचनात्मक कार्य को दबाने का प्रयास लोकतांत्रिक समाज में उचित नहीं हो सकता। इस मामले में अदालत का निर्णय भविष्य में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कला के अधिकार को लेकर एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित कर सकता है।