नई दिल्ली, 24 सितंबर (युआईटीवी)- चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने और डाउनलोड करने दोनों को ही सुप्रीम कोर्ट ने अपराध बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम के तहत चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना और डाउनलोड करना दोनों ही अपराध की श्रेणी में आएँगे। इससे पहले मद्रास उच्च न्यायालय ने निजी तौर पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या उसे डाउनलोड करने को पॉक्सो अधिनियम के दायरे में नहीं आने का निर्णय दिया था।
सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने और डाउनलोड करने दोनों को अपराध की श्रेणी में रखने का फैसला दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास हाईकोर्ट के निजी तौर पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या उसे डाउनलोड करने को पॉक्सो अधिनियम के दायरे में नहीं आने के निर्णय को पलटते हुए केंद्र सरकार को “चाइल्ड पोर्नोग्राफी” शब्द को “बाल यौन शोषण तथा दुर्व्यवहार सामग्री” से बदल दिए जाने का सुझाव दिया।
बता दें कि मद्रास उच्च न्यायालय के बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना तथा उसे अपने पास रखना कोई अपराध नहीं है के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस वर्ष मार्च महीने में नोटिस जारी किया था।
मद्रास उच्च न्यायालय ने निजी तौर पर बाल पोर्नोग्राफी देखना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के दायरे में नहीं आने का निर्णय लेते हुए चेन्नई के 28 वर्षीय व्यक्ति को दोष मुक्त कर दिया था।
न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश की पीठ ने तर्क दिया कि अभियुक्त ने सिर्फ सामग्री को डाउनलोड किया था और पोर्नोग्राफी को निजी तौर पर देखी थी। इसे अभियुक्त के द्वारा न तो प्रकाशित किया गया था और न ही दूसरों के लिए प्रसारित किया गया था। उसने किसी बच्चे या बच्चों का पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल नहीं किया है,इसलिए इसे अभियुक्त के नैतिक पतन के रूप में समझा जा सकता है।
आरोपी के फोन को चेन्नई पुलिस ने जब्त कर जाँच कर पाया कि उसने अपने पास चाइल्ड पोर्न वीडियो को डाउनलोड कर रखी थी। इसके बाद पुलिस के द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 बी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 14(1) के तहत आरोपी के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
भारत में बाल पोर्नोग्राफी के निर्माण,वितरण और कब्जे को पॉक्सो अधिनियम 2012 और आईटी अधिनियम 2000,अन्य कानूनों के तहत अपराध घोषित किया गया है।