नई दिल्ली, 24 मई (युआईटीवी/आईएएनएस)- सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र को सुझाव दिया कि कोरोना की वजह से जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को राहत प्रदान करने के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र को लेकर एक समान नीति होनी चाहिए और साथ ही कुछ दिशानिर्देश भी होने चाहिए। जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि कई बार मृत्यु प्रमाण पत्र में दिए गए कारण दिल का दौरा या फेफड़ा खराब होना हो सकता है, लेकिन ये कोविड की वजह से हो सकते हैं।
पीठ ने केंद्र के वकील से पूछा, “तो, मृत्यु प्रमाण पत्र कैसे जारी किए जा रहे हैं?”
शीर्ष अदालत ने एक जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया, जिसमें कोविड -19 की वजह से मरने वाले प्रत्येक व्यक्ति के परिजनों को 4 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की गई थी।
अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल की ओर से दायर याचिका में कहा गया है, “यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 12 के अनुसार आपदा से प्रभावित व्यक्तियों को राहत के न्यूनतम मानक प्रदान करना राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का मौलिक कर्तव्य है।”
अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, “आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 12 (3) के अनुसार, एनडीएमए आपदा से प्रभावित व्यक्तियों को नुकसान के कारण अनुग्रह सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य है।”
पीठ ने केंद्र और आईसीएमआर से आपदा प्रबंधन अधिनियम के संबंध में राज्य की नीति के बारे में पूछा, और यह भी पूछा कि कोविड घोषित होने के बाद मृतक के परिजनों को 4 लाख रुपये के भुगतान के लिए अधिनियम के तहत इस नीति का कार्यान्वयन कैसे काम करेगा।
केंद्र के वकील ने मामले में जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा, लेकिन शीर्ष अदालत ने उनसे 10 दिनों में जवाब दाखिल करने को कहा और पूछा ‘क्या मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए एक समान नीति है।’
याचिका में शीर्ष अदालत से केंद्र और राज्य सरकारों को कोविड -19 पीड़ितों के परिजनों को सामाजिक सुरक्षा और पुनर्वास प्रदान करने के निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया।