मुंबई,29 मार्च (युआईटीवी)- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा शुक्रवार को जारी किए गए आँकड़ों के अनुसार, 28 मार्च 2025 को समाप्त हुए सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 4.5 अरब डॉलर बढ़कर 658.8 अरब डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया। यह आँकड़ा पिछले चार महीनों में सबसे अधिक वृद्धि दर्शाता है,जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत है।
आरबीआई के अनुसार,इस वृद्धि में विदेशी मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा फॉरेन करेंसी एसेट्स (एफसीए) में हुआ बदलाव है। हालाँकि,एफसीए 1.6 अरब डॉलर घटकर 558.86 अरब डॉलर पर पहुँच गया है। एफसीए में परिवर्तन आमतौर पर विदेशी मुद्रा भंडार में रखी विदेशी मुद्राओं जैसे यूरो,पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी इकाइयों के मूल्य में होने वाली वृद्धि या गिरावट के कारण होता है। इस वजह से,विदेशी मुद्राओं में उतार-चढ़ाव का सीधा प्रभाव एफसीए पर देखा जाता है और इसके कारण विदेशी मुद्रा भंडार का कुल आकार प्रभावित होता है।
समीक्षा अवधि के दौरान, गोल्ड रिजर्व में भी वृद्धि हुई है। इसमें 2.8 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई है,जिससे यह 77.2 अरब डॉलर के स्तर पर पहुँच गया है। इससे पहले 14 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 0.305 अरब डॉलर बढ़कर 654.27 अरब डॉलर हो गया था,जो अब तक का एक सकारात्मक बदलाव था।
यह लगातार तीसरा सप्ताह है,जब भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि देखी गई है। 2024 के सितंबर महीने में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 704.885 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चतम स्तर पर पहुँचा था,जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती का प्रतीक है।
विदेशी मुद्रा भंडार में यह बढ़ोतरी भारतीय मुद्रा,यानी रुपया,को भी मजबूती प्रदान करती है। विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी से भारतीय रिजर्व बैंक को यह अतिरिक्त क्षमता मिलती है कि वह बाजार में हस्तक्षेप कर सके और रुपये की अस्थिरता को नियंत्रित कर सके। इसके परिणामस्वरूप,भारतीय रुपया मजबूती से आगे बढ़ा है और यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी है।
मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार का मतलब यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक को रुपये को गिरने से रोकने के लिए अधिक डॉलर जारी करने और हाजिर व अग्रिम मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप करने की क्षमता प्राप्त होती है। इसके विपरीत,यदि विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आती है,तो भारतीय रिजर्व बैंक के पास रुपये की गिरावट को नियंत्रित करने के लिए कम स्थान होता है,जिससे मुद्रा बाजार में अस्थिरता पैदा हो सकती है।
इसके अलावा,वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी किए गए ताजा आँकड़ों के अनुसार,भारत का व्यापार घाटा फरवरी 2025 में घटकर 14.05 अरब डॉलर रह गया,जो जनवरी 2025 में 22.99 अरब डॉलर था। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक और अच्छा संकेत है,क्योंकि व्यापार घाटे में गिरावट दिखाती है कि आयात और निर्यात के बीच संतुलन में सुधार हो रहा है।
भारत का निर्यात फरवरी में 1.3 प्रतिशत बढ़कर 36.91 अरब डॉलर हो गया,जबकि जनवरी में यह 36.43 अरब डॉलर था। निर्यात में यह वृद्धि भारतीय उत्पादन और व्यापार की वृद्धि को दर्शाती है। दूसरी ओर,भारत का आयात फरवरी में 16.3 प्रतिशत घटकर 50.96 अरब डॉलर रह गया,जबकि जनवरी में यह 59.42 अरब डॉलर था। आयात में गिरावट से यह संकेत मिलता है कि भारत की माँग में कमी आई है और यह घरेलू उत्पादकता बढ़ने का परिणाम हो सकता है या फिर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में सुधार हो सकता है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार,निर्यात और आयात के बीच का अंतर (व्यापार घाटा) पहले की तुलना में कम हुआ है,जो भारतीय अर्थव्यवस्था के संतुलित व्यापार संबंधों को दर्शाता है। यह स्थिति भारतीय रिजर्व बैंक के लिए भी सुखद है,क्योंकि यह विदेशी मुद्रा भंडार में अधिक वृद्धि का कारण बनती है और मुद्रा को स्थिर रखने में मदद करती है।
भारत का व्यापार घाटा कम होने से देश की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है, क्योंकि इससे विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ती है,जो कि भारतीय रुपये के लिए सहायक है। इसके अलावा,यदि निर्यात में बढ़ोतरी और आयात में कमी बनी रहती है, तो यह भारत के चालू खाता घाटे को कम करने में भी मदद कर सकता है,जिससे देश के वित्तीय स्वास्थ्य में सुधार होगा।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में हो रही यह वृद्धि और व्यापार घाटे में कमी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत हैं। इन आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि भारतीय रिजर्व बैंक की नीतियों और सरकार की व्यापारिक रणनीतियों का सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इससे न केवल रुपये की स्थिरता को बल मिलता है,बल्कि भारतीय व्यापार क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता भी बढ़ती है।