भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में हुई वृद्धि (तस्वीर क्रेडिट@garrywalia_)

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में हुई वृद्धि, 676.3 बिलियन डॉलर पर पहुँचा

नई दिल्ली,12 अप्रैल (युआईटीवी)- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई ) द्वारा जारी ताजा आँकड़ों के अनुसार,भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 4 अप्रैल को समाप्त सप्ताह में 10.8 बिलियन डॉलर की बड़ी वृद्धि के साथ 676.3 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया है। यह लगातार पाँचवां सप्ताह है,जब देश के विदेशी मुद्रा भंडार में सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई है,जो भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिरता और बाह्य क्षेत्र की मजबूती का संकेत देता है।

आरबीआई की साप्ताहिक सांख्यिकीय रिपोर्ट के अनुसार,इस वृद्धि में सबसे बड़ा योगदान विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों का रहा,जो 9 बिलियन डॉलर बढ़कर 574.08 बिलियन डॉलर हो गई हैं। इसके साथ ही देश का स्वर्ण भंडार भी 1.5 बिलियन डॉलर बढ़कर 79.36 बिलियन डॉलर हो गया है। इसके अतिरिक्त, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से जुड़ी विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) की संपत्तियाँ 186 मिलियन डॉलर की वृद्धि के साथ 18.36 बिलियन डॉलर पर पहुँच गईं।

इससे पहले,28 मार्च 2025 को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 6.6 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी के साथ 665.4 बिलियन डॉलर हो गया था,जो पाँच महीनों में इसका उच्चतम स्तर था। यह बढ़ती प्रवृत्ति संकेत देती है कि भारत अपने विदेशी मुद्रा भंडार को लेकर मजबूत स्थिति में है,जिससे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में रुपये की स्थिति भी बेहतर होती है।

आरबीआई द्वारा बाजार में समय-समय पर किए गए हस्तक्षेप और पुनर्मूल्यांकन उपायों के चलते पिछले हफ्तों की गिरावट का रुझान अब पलट गया है और विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार मजबूती देखने को मिल रही है। आरबीआई का यह हस्तक्षेप रुपये की अस्थिरता को कम करने और मुद्रा विनिमय दरों को स्थिर बनाए रखने के लिए किया गया है।

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर 2024 में 704.885 बिलियन डॉलर के अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया था। उस समय भी भारत ने दुनिया को यह दिखाया था कि वह आर्थिक संकटों या वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भी अपने बाह्य क्षेत्र को सुरक्षित और सशक्त बनाए रखने में सक्षम है।

मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार भारत के लिए कई मायनों में फायदेमंद होता है। सबसे पहले,यह रुपये को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले स्थिर बनाए रखने में मदद करता है, जिससे आयात कम महँगा होता है और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण बना रहता है। दूसरा, यह वैश्विक निवेशकों को भारत की आर्थिक स्थिरता का भरोसा देता है,जिससे विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलता है। तीसरा,यह आरबीआई को स्पॉट और फॉरवर्ड करेंसी मार्केट में हस्तक्षेप करने के लिए अधिक गुंजाइश देता है,जिससे रुपये की गिरावट को रोका जा सकता है।

इसके विपरीत,जब विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आती है,तो आरबीआई के पास मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करने के लिए सीमित संसाधन रह जाते हैं,जिससे रुपये में अस्थिरता बढ़ सकती है और आयात महँगा हो सकता है।

इस बीच,भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने व्यापार घाटे को लेकर एक और सकारात्मक संकेत दिया है। फरवरी 2025 में भारत का व्यापारिक व्यापार घाटा 14.05 बिलियन डॉलर पर आ गया,जो पिछले तीन वर्षों में सबसे निचला स्तर है। जनवरी में यह घाटा 22.99 बिलियन डॉलर था। इस महीने के दौरान निर्यात स्थिर रहा,जबकि आयात में गिरावट देखने को मिली। यह गिरावट वैश्विक बाजार में बढ़ती भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था के बाहरी क्षेत्र की मजबूती को दर्शाती है।

आयात में कमी और व्यापार घाटे में गिरावट भारत के चालू खाते की स्थिति को बेहतर बनाते हैं और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव को कम करते हैं। साथ ही,रुपये पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं,जिससे देश की आर्थिक स्थिति और मजबूत होती है।

भारत का लगातार बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार और घटता व्यापार घाटा देश की आर्थिक स्थिरता और लचीलापन दर्शाता है। इन संकेतकों से स्पष्ट है कि भारत वैश्विक चुनौतियों के बीच भी अपने वित्तीय और वाणिज्यिक संतुलन को बनाए रखने में सफल रहा है। आने वाले समय में यदि यह रुझान बना रहता है,तो भारत की क्रेडिट रेटिंग,निवेशकों का विश्वास और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में भारत की स्थिति और अधिक सुदृढ़ हो सकती है।

यह स्थिति न केवल आरबीआई के विवेकपूर्ण प्रबंधन को रेखांकित करती है,बल्कि भारत की व्यापक आर्थिक नीतियों और रणनीतिक वैश्विक भागीदारी की सफलता का भी प्रतीक है।