लड़ाकू विमान (तस्वीर क्रेडिट@Siddhantmt)

भारतीय वायुसेना को एचएएल करेगा एलसीए लड़ाकू विमान की आपूर्ति,वायुसेना ने जताई थी चिंता

नई दिल्ली,13 फरवरी (युआईटीवी)- भारतीय वायुसेना को स्वदेशी लड़ाकू विमानों की आपूर्ति में हो रही देरी से गंभीर चिंता का सामना करना पड़ रहा है। विशेष रूप से,एलसीए (लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) मार्क-1ए लड़ाकू विमानों की आपूर्ति में देरी से वायुसेना की क्षमता पर असर पड़ रहा है। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने इस मुद्दे पर कई मौकों पर अपनी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि स्वदेशी लड़ाकू विमानों की आपूर्ति में हो रही देरी भारतीय वायुसेना की परिचालन क्षमता को प्रभावित कर रही है।

यह लड़ाकू विमान भारतीय आत्मनिर्भरता के तहत बनाए जा रहे हैं और इनका निर्माण हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा किया जा रहा है। इन विमानों का निर्माण विशेष रूप से वायुसेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है। हालाँकि,एचएएल ने स्वीकार किया है कि एलसीए मार्क-1ए की आपूर्ति में देरी हो रही है और इसके पीछे मुख्य कारण अमेरिका से मिलने वाले इंजन की आपूर्ति में बाधा है।

एचएएल के सीएमडी डीके सुनील ने बेंगलुरु में बताया कि अमेरिका से एफ-404 इंजन की आपूर्ति मार्च 2025 से शुरू हो जाएगी। इस साल के अंत तक वायुसेना को एक दर्जन इंजन मिलेंगे,जिसके बाद एलसीए मार्क-1ए की आपूर्ति जल्द ही शुरू हो जाएगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह देरी तकनीकी खामियों के कारण हुई थी, जिन्हें अब हल कर लिया गया है।

डीके सुनील ने कहा, “हम वायु सेना के प्रमुख की चिंता को समझते हैं। वायु सेना के स्क्वाड्रन की ताकत में कमी आ रही है और हम वादा करते हैं कि इन समस्याओं का समाधान जल्द होगा। इसके लिए हमने विभिन्न स्तरों पर कई बैठकें की हैं और हम जल्द ही विमान की आपूर्ति शुरू करेंगे।”

एचएएल का कहना है कि विमान की आपूर्ति में देरी मुख्य रूप से विदेशी इंजन की आपूर्ति में बाधा के कारण हुई है। जब भारतीय वायुसेना के पास पुराने विमान जैसे मिग-21,मिग-29 और मिराज हैं। इन विमानों की संख्या कम हो रही है,तो नई विमानों की आपूर्ति में देरी वायुसेना की क्षमता पर प्रभाव डाल रही है।

विशेषज्ञों के अनुसार, एफ-404 इंजन की आपूर्ति में देरी के कारण एलसीए मार्क-1ए की सप्लाई में दो साल का समय लग चुका है। इस देरी से भारतीय वायुसेना को अपनी शक्ति में कमी महसूस हो रही है,खासकर जब वह पुराने विमानों की जगह नए विमानों की जरूरत महसूस कर रही है।

रक्षा मंत्रालय ने स्वदेशी एलसीए प्रोजेक्ट को वायुसेना की मुख्य ताकत बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। वर्तमान में,वायुसेना के पास दो एलसीए-तेजस (मार्क-1) की स्क्वाड्रन हैं,जो तमिलनाडु के सुलूर एयरबेस पर तैनात हैं। इन विमानों को प्रमुखता से वायुसेना की ताकत में बढ़ोतरी करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

केंद्र सरकार ने एलसीए मार्क-1ए के कुल 83 विमानों की मंजूरी दी है और इसके अलावा 97 अतिरिक्त विमानों के लिए भी हरी झंडी मिल सकती है। कुल मिलाकर, 220 एलसीए विमान वायुसेना के मिग-21, मिग-29 और मिराज विमानों की जगह लेंगे,जो अब पुराने हो चुके हैं। इसके साथ ही,सरकार ने एलसीए के मार्क-2 वर्जन यानी मीडियम वेट फाइटर एयरक्राफ्ट के लिए भी मंजूरी दी है,ताकि वायुसेना की सुरक्षा क्षमता को और बढ़ाया जा सके।

इस पूरी प्रक्रिया में स्वदेशी एलसीए विमान वायुसेना की प्राथमिकता बन गए हैं और उनका उद्देश्य भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ाना है। इसके अलावा,यह कदम वायुसेना को तकनीकी और सामरिक दृष्टि से मजबूत करने के लिए उठाया गया है।

हालाँकि,स्वदेशी लड़ाकू विमान के निर्माण में हो रही देरी वायुसेना की क्षमता पर असर डाल रही है,लेकिन सरकार और एचएएल ने इस समस्या को हल करने के लिए काम करना शुरू कर दिया है। उम्मीद है कि जल्द ही इन विमानों की आपूर्ति शुरू होगी,जिससे वायुसेना की ताकत को फिर से बढ़ाया जा सकेगा और भारतीय सुरक्षा को और मजबूत किया जा सकेगा।