अंतर्राष्ट्रीय समुद्री अभ्यास

भारतीय युद्धपोतों ने जर्मनी और सिंगापुर के साथ किया युद्धाभ्यास

नई दिल्ली,25 अक्टूबर (युआईटीवी)- भारत और सिंगापुर की नौसेनाएँ इन दिनों विशाखापत्तनम में समुद्री द्विपक्षीय अभ्यास कर रही हैं। इस अभ्यास का नाम “सिंबेक्स” है, जो 1994 में “एक्सरसाइज लायन किंग” के रूप में शुरू हुआ था। तब से भारतीय नौसेना और रिपब्लिक ऑफ सिंगापुर नेवी के बीच यह एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समुद्री सहयोग बन गया है।

इस बार अभ्यास का आयोजन दो चरणों में किया जा रहा है। पहला चरण 24 अक्टूबर को आईएनएस शिवालिक पर शुरू हुआ,जिसमें पूर्व बेड़े और सिंगापुर नौसेना की भाग लेने वाली इकाइयाँ शामिल हुईं। बंदरगाह चरण 25 अक्टूबर तक चल रहा है, जबकि दूसरा चरण 28 से 29 अक्टूबर तक बंगाल की खाड़ी में होगा। इस वर्ष के संस्करण का मुख्य उद्देश्य भारत और सिंगापुर के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना,अंतर-संचालनीयता को बढ़ाना और समुद्री क्षेत्र में आम चुनौतियों का सामना करने के लिए सहयोग को बढ़ावा देना है।

बंदरगाह चरण में विशेषज्ञों का आदान-प्रदान, क्रॉस-डेक दौरे, खेल आयोजन और दोनों नौसेनाओं के कर्मियों के बीच पूर्व-नौकायन ब्रीफिंग शामिल हैं। समुद्री चरण में उन्नत नौसैनिक अभ्यास किए जाएँगे,जिसमें लाइव हथियारों से फायरिंग,पनडुब्बी रोधी युद्ध (एएसडब्ल्यू) प्रशिक्षण,सतह रोधी और विमान रोधी संचालन,समुद्री कौशल विकास और सामरिक अभ्यास शामिल हैं।

साथ ही,भारतीय नौसेना के विध्वंसक आईएनएस दिल्ली ने जर्मन नौसेना के युद्धपोत बाडेन-वुर्टेमबर्ग और टैंकर फ्रैंकफर्ट एम मेन के साथ हिंद महासागर में समुद्री साझेदारी अभ्यास (एमपीएक्स) का आयोजन किया। इस अभ्यास में क्रॉस-डेक उड़ान संचालन,निरंतर पुन पूर्ति,फायरिंग और सामरिक युद्धाभ्यास शामिल हैं।

बंगाल की खाड़ी में होने वाला यह अभ्यास भारतीय और जर्मन नौसेनाओं के बीच समुद्री संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारतीय रक्षा मंत्रालय के मुताबिक,आईएनएस दिल्ली भारतीय नौसेना के पूर्वी बेड़े का हिस्सा है और यह अपनी श्रेणी का प्रमुख विध्वंसक जहाज है।वहीं,जर्मन नौसेना के केएफ 125 वर्ग के युद्धपोतों का प्रमुख जहाज बाडेन-वुर्टेमबर्ग है।

इस प्रकार,यह समुद्री अभ्यास न केवल दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देने का कार्य कर रहा है,बल्कि यह क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को भी सुनिश्चित करने में मदद करेगा। यह अभ्यास दोनों देशों की नौसैनिक क्षमताओं को और बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है,जो भविष्य में संभावित समुद्री चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करेगा।