चेन्नई, 16 सितंबर (युआईटीवी/आईएएनएस)- भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी 4.9 टन से लेकर 16.3 टन तक की क्षमता वाले मध्यम से भारी रॉकेट के बेड़े पर काम कर रही है। यह जानकारी एक वरिष्ठ अधिकारी ने दी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के क्षमता निर्माण कार्यक्रम कार्यालय (सीबीपीओ) के निदेशक एन. सुधीर कुमार ने कहा कि पांच रॉकेट परियोजना रिपोर्ट चरण में हैं और भविष्य में परिचालन में आएंगे।
वह हाल ही में भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा वर्चुअल मोड में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष सम्मेलन और प्रदर्शनी में बोल रहे थे।
जब ऐसा होता है तो इसरो न केवल अपने संचार उपग्रहों को लॉन्च कर सकता है, बल्कि वैश्विक संचार उपग्रह प्रक्षेपण बाजार में भी प्रवेश कर सकता है।
कुमार ने यह भी कहा कि इसरो जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-एमके 3 (जीएसएलवी-एमके 3) को अपग्रेड करने पर काम कर रहा है, जो चार टन तक भारी जियो ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) तक ले जा सकता है।
आम तौर पर रॉकेट संचार उपग्रहों को जीटीओ में बाहर निकाल देते हैं। जीटीओ से उपग्रहों को उनके इंजनों को फायर करके भूस्थिर कक्षा में ले जाया जाएगा।
भारत चार टन से अधिक वजन वाले अपने संचार उपग्रहों की परिक्रमा करने के लिए एरियनस्पेस के एरियन रॉकेट का उपयोग करता है।
कुमार के अनुसार, इसरो जीएसएलवी-एमके 3 की भारोत्तोलन क्षमता को छह टन और 7.5 को जीटीओ में अपग्रेड करने पर भी काम कर रहा है।
उन्होंने कहा कि छह टन की लिफ्ट क्षमता एवियोनिक्स के लघुकरण, इसके तीन चरणों/ इंजनों के उन्नयन, संरचनात्मक द्रव्यमान अनुकूलन और अन्य माध्यमों से हासिल की जाएगी।
कुमार ने कहा कि इसरो अपने सेमी-क्रायोजेनिक इंजन को साकार करने के कगार पर है। शुद्ध मिट्टी के तेल से चलने वाला इंजन जो जल्द ही जीएसएलवी-एमके 3 को शक्ति देगा, ताकि रॉकेट उन्नत क्रायोजेनिक इंजन के साथ 7.5 टन पेलोड को जीटीओ तक ले जा सके।