ईसा गुहा और बुमराह (तस्वीर क्रेडिट@BakraofDv)

जसप्रीत बुमराह पर ‘नस्लीय टिप्पणी’ करने के बाद अंग्रेजी कमेंटेटर ईशा गुहा ने माफी माँगी

नई दिल्ली,17 दिसंबर (युआईटीवी)- जसप्रीत बुमराह पर नस्लीय टिप्पणी ने क्रिकेट जगत में भारी हलचल मचा दी है। वर्तमान में क्रिकेट जगत के सबसे श्रेष्ठ गेंदबाजों में से एक माने जाने वाले बुमराह ने हाल ही में भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया के तीसरे टेस्ट मैच में 5 विकेट लेकर अपनी जबर्दस्त गेंदबाजी का परिचय दिया। उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में अब तक बारहवीं बार किसी मैच की एक पारी में 5 या उससे अधिक विकेट हासिल किए हैं,जो एक बड़ी उपलब्धि है,लेकिन इस उपलब्धि के साथ ही बुमराह को एक महिला कमेंटेटर द्वारा की गई नस्लीय टिप्पणी का सामना करना पड़ा,जिसने क्रिकेट जगत में भूचाल ला दिया।

ब्रिसबेन टेस्ट के दूसरे दिन के पहले सेशन में बुमराह ने शानदार गेंदबाजी का प्रदर्शन करते हुए 2 विकेट चटकाए थे,तब ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज गेंदबाज ब्रेट ली ने उनकी जमकर तारीफ की। इसी दौरान,अंग्रेजी कमेंटेटर ईसा गुहा ने कुछ ऐसा कह दिया,जिसने विवाद का रूप ले लिया। ईसा गुहा ने बुमराह को ‘प्राइमेट’ कहकर संबोधित किया,जिसका हिन्दी में अर्थ ‘नरवानर’ होता है। उनका यह शब्द चुनाव इतना विवादास्पद हो गया कि सोशल मीडिया पर इसकी तीखी आलोचना शुरू हो गई। उन्होंने बुमराह को “मोस्ट वैल्यूएबल प्राइमेट जसप्रीत बुमराह” कहा था और इसके बाद यह टिप्पणी तेजी से चर्चा का विषय बन गई।

यह शब्द विवाद का कारण इसलिए बन गया क्योंकि ‘प्राइमेट’ और ‘वानर’ जैसे शब्दों का संदर्भ भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए 2008 के ‘मंकीगेट स्कैंडल’ से जुड़ा हुआ था। 2008 में सिडनी में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट मैच के दौरान भारतीय गेंदबाज हरभजन सिंह पर आरोप लगा था कि उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी एंड्रयू साइमंड्स को ‘मंकी’ कहकर संबोधित किया था। इस आरोप के कारण हरभजन सिंह को तीन मैचों का सस्पेंशन झेलना पड़ा था और यह मामला काफी विवादित हो गया था। ‘मंकी’ शब्द के चलते इस घटना की यादें ताजा हो गईं और ईसा गुहा द्वारा ‘प्राइमेट’ शब्द का इस्तेमाल करते ही ‘मंकीगेट’ विवाद की छाया एक बार फिर क्रिकेट प्रेमियों के बीच फैल गई।

ईसा गुहा ने इस विवाद के बाद माफी माँगी। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने बयान को लेकर खेद जताया और कहा कि उनका उद्देश्य केवल जसप्रीत बुमराह को सम्मान देना था। गुहा ने माफी माँगते हुए कहा कि, “मैंने कल कमेंट्री के दौरान एक शब्द का इस्तेमाल किया,जिसके कई अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं। अगर मेरी बात से किसी को भी ठेस पहुँची हो,तो मैं माफी चाहती हूँ। मैं हमेशा दूसरों का सम्मान करती हूँ और कभी भी जानबूझकर किसी को चोट पहुँचाने का इरादा नहीं रखती।”

‘प्राइमेट’ शब्द का सामान्य अर्थ बड़े दिमाग वाले नरवानर के रूप में लिया जाता है, लेकिन यह शब्द विवाद का कारण इसलिए बन गया क्योंकि इसके साथ ‘वानर’ का संदर्भ जुड़ने से साल 2008 के ‘मंकीगेट’ विवाद की यादें ताजा हो गईं। सोशल मीडिया पर इस पर तीखी प्रतिक्रियाएँ आईं और कई लोगों ने गुहा के शब्दों को नस्लीय रूप से भड़काऊ बताया। कई यूजर्स ने उनके बयान को गलत और संवेदनशील कहा और कुछ ने तो यह भी दावा किया कि इस तरह के शब्दों से उनके करियर को गंभीर नुकसान हो सकता है।

कई क्रिकेट प्रेमियों ने ईसा गुहा के बयान को जातिवाद और नस्लवाद से संबंधित करार दिया और इस पर सवाल उठाए कि क्या कमेंटेटर को इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए था। इसके अलावा,गुहा के शब्दों ने भारतीय दर्शकों के बीच असंतोष पैदा किया,क्योंकि बुमराह को ‘वानर’ जैसा शब्द संबोधित करना भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक संवेदनशील मुद्दा बन गया।

हालाँकि,ईसा गुहा ने अपनी टिप्पणी के लिए माफी माँग ली है,फिर भी इस विवाद ने क्रिकेट जगत में एक नई बहस को जन्म दिया है। सवाल यह उठता है कि क्या कमेंटेटर को अपनी भाषा के चयन में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए,खासकर जब बात खिलाड़ियों की नस्लीय पहचान से जुड़ी हो। किसी भी टिप्पणी का चुनाव खासतौर पर इस तरह के संवेदनशील संदर्भ में खेल जगत के लिए और दर्शकों के लिए गहरी महत्वपूर्ण होता है।

अब तक इस विवाद को लेकर कोई औपचारिक कार्रवाई नहीं की गई है,लेकिन यह घटना इस बात का संकेत है कि खेल में बयानबाजी और कमेंट्री को लेकर अधिक जिम्मेदारी की आवश्यकता है। यह बात भी अहम है कि सार्वजनिक मंच पर किए गए बयान कभी-कभी बहुत बड़े विवाद का कारण बन सकते हैं और इस तरह के मामलों में सामंजस्यपूर्ण और संवेदनशील भाषा का इस्तेमाल आवश्यक है।

ईसा गुहा की माफी के बावजूद,यह विवाद इस बात को रेखांकित करता है कि खेल और अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों में शब्दों का प्रभाव किस हद तक गहरा हो सकता है। ऐसे विवादों से यह भी सिखने को मिलता है कि कमेंटेटर्स और अन्य सार्वजनिक हस्तियों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और अपने शब्दों का चयन सावधानी से करना चाहिए,ताकि किसी भी व्यक्ति या समुदाय को अनजाने में ठेस न पहुँचे।