सिद्दारमैया

कर्नाटक हाईकोर्ट से सिद्दारमैया को मिली राहत, ‘मुडा’ मामले में सीबीआई जाँच की माँग वाली याचिका की खारिज

बेंगलुरु,7 फरवरी (युआईटीवी)- कर्नाटक हाईकोर्ट ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री सिद्दारमैया को बड़ी राहत दी,जब उसने मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) मामले की केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) से जाँच की माँग वाली याचिका को खारिज कर दिया। यह फैसला न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली कर्नाटक उच्च न्यायालय की धारवाड़ पीठ ने सुनाया। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 27 जनवरी को अपना फैसला सुरक्षित रखा था और अब उसने याचिका खारिज करने का निर्णय लिया।

इस मामले में मुख्यमंत्री सिद्दारमैया को पहला आरोपी बनाया गया था,जबकि उनकी पत्नी बी.एम. पार्वती को दूसरा आरोपी बताया गया था। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि सिद्दारमैया ने एमयूडीए द्वारा अधिग्रहित 3 एकड़ और 16 गुंटा भूमि के बदले में अपनी पत्नी के नाम पर 14 साइटों के लिए मुआवजा हासिल करने के लिए अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल किया था। इस आरोप के चलते याचिकाकर्ता ने कर्नाटक लोकायुक्त द्वारा चल रही जाँच पर आपत्ति जताई थी और इसके बजाय सीबीआई से स्वतंत्र जाँच की माँग की थी।

इस फैसले के बाद याचिकाकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने प्रतिक्रिया दी और इसे एक अस्थायी झटका बताया। उन्होंने कहा कि आदेश पत्र उपलब्ध होने के बाद अपील दायर की जाएगी। याचिकाकर्ता के वकील,वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने स्वतंत्र सीबीआई जाँच की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने तर्क किया कि जब उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारियों पर आरोप लगे,तो निष्पक्ष जाँच की आवश्यकता होती है। उनका कहना था, “पूरी कैबिनेट ने इस मामले में मुख्यमंत्री सिद्दारमैया को बचाने का फैसला किया है।”

इसके जवाब में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि याचिकाकर्ता ने पहले लोकायुक्त जाँच की माँग की थी,लेकिन बाद में लोकायुक्त की जाँच पूरी होने से पहले सीबीआई जाँच की माँग की। उन्होंने यह भी कहा कि सीबीआई भी सरकारी नियंत्रण में है,जबकि लोकायुक्त पुलिस स्वतंत्र रूप से काम करती है। उनका तर्क था कि लोकायुक्त के तहत जाँच पूरी करने से पहले सीबीआई जाँच की माँग करना उचित नहीं था।

वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी इस मामले में अपनी राय दी और कहा कि यह सीबीआई जाँच की माँग करने वाला “दुर्लभतम” मामला नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि इस तरह की याचिकाओं को अनुमति दी जाती है,तो यह एक खतरनाक मिसाल कायम करेगा,जो भविष्य में इसी तरह के मामलों में दखल देने का आधार बन सकता है।

अदालत ने इस मामले में महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए। उसने कर्नाटक लोकायुक्त को अपनी जाँच जारी रखने और अपनी आगे की रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। यह कदम यह स्पष्ट करता है कि उच्च न्यायालय ने लोकायुक्त की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर विश्वास जताया और यह सुनिश्चित किया कि लोकायुक्त अपनी जाँच को निष्पक्ष रूप से आगे बढ़ाए।

इस फैसले से यह सिद्ध हो गया कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने सीबीआई जाँच की माँग को खारिज करते हुए लोकायुक्त को अपनी स्वतंत्र जाँच जारी रखने का आदेश दिया। इसके साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक लोकायुक्त अपनी जाँच पूरी नहीं करता,तब तक सीबीआई की जाँच की आवश्यकता नहीं है। यह फैसला कर्नाटक के राजनीति और प्रशासन में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है,जो आगे चलकर राजनीतिक विवादों और कानूनी लड़ाइयों को प्रभावित करेगा।