नई दिल्ली,17 दिसंबर (युआईटीवी)- इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने सप्ताह में 70 घंटे काम करने के विचार को एक बार फिर से दोहराया है और युवाओं से देश के विकास में योगदान देने के लिए कड़ी मेहनत करने की अपील की है। नारायण मूर्ति ने सबसे पहले वर्ष 2023 में इस विचार का सुझाव दिया था,जिसका उद्देश्य देश के आर्थिक और सामाजिक विकास को गति देना था। हालाँकि,उनके इस बयान को कई लोगों का खासकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों और डॉक्टरों की आलोचना का शिकार होना पड़ा था,फिर भी कुछ प्रमुख हस्तियों,जैसे ओला के सीईओ भाविश अग्रवाल ने इस विचार की सराहना की थी।
हाल ही में, कोलकाता में आयोजित एक कार्यक्रम में नारायण मूर्ति ने एक बार फिर से अपनी इस सोच को साझा करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी को यह समझना चाहिए कि अगर देश को वैश्विक स्तर पर नंबर एक बनाना है तो इसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी होगी। मूर्ति ने यह भी कहा कि भारतीयों को उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है,ताकि देश अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच सके।
इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के शताब्दी समारोह में नारायण मूर्ति ने आरपीएसजी ग्रुप के चेयरमैन संजीव गोयनका के साथ बातचीत के दौरान कहा कि, “मैंने इंफोसिस में,यह कहा था कि हम सर्वश्रेष्ठ बनेंगे और सर्वश्रेष्ठ वैश्विक कंपनियों से अपनी तुलना करेंगे। एक बार जब हम वैश्विक कंपनियों से अपनी तुलना करेंगे,तो मुझे यकीन है कि भारतीयों में बहुत कुछ करने की क्षमता है।” मूर्ति का यह बयान भारतीय युवाओं को प्रेरित करने के लिए था,ताकि वे न केवल अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को पूरा करें,बल्कि देश के विकास में भी योगदान दें।
नारायण मूर्ति ने देश के विकास के लिए भारतीयों की जिम्मेदारी को भी उजागर किया। उन्होंने कहा कि अगर हम अपने लक्ष्यों को बड़ा नहीं रखते हैं,तो हम गरीबी से बाहर नहीं निकल सकते। उनका मानना था कि आज भी 80 करोड़ भारतीय मुफ्त राशन पर निर्भर हैं, जो यह संकेत देता है कि यह संख्या गरीबी की गहरी समस्या को दर्शाती है। मूर्ति ने यह सवाल भी उठाया कि अगर हम खुद कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार नहीं हैं,तो और कौन करेगा?
उन्होंने यह भी कहा कि उनका मानना है कि एक देश गरीबी से तभी लड़ सकता है जब वह रोजगार सृजन के रास्ते पर चले। मूर्ति के अनुसार,उद्यमिता सरकार का कार्य नहीं है, बल्कि यह उद्यमियों की जिम्मेदारी है कि वे रोजगार सृजन करें और राष्ट्र निर्माण में योगदान दें। उनका मानना है कि जब उद्यमी रोजगार के अवसर पैदा करते हैं और अपने निवेशकों के लिए धन सृजन करते हैं,तो वह देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाते हैं और करों का भुगतान भी करते हैं,जो अंततः देश के बुनियादी ढाँचे को बेहतर बनाने में मदद करता है।
नारायण मूर्ति ने कहा कि, “उद्यमी राष्ट्र का निर्माण करते हैं क्योंकि वे रोजगार के अवसर पैदा करते हैं,वे अपने निवेशकों के लिए धन सृजन करते हैं और वे करों का भुगतान करते हैं। अगर कोई देश पूँजीवाद को अपनाता है,तो वह अच्छी सड़कें,ट्रेनें और बेहतर बुनियादी ढाँचा को तैयार करेगा।” इस टिप्पणी से मूर्ति ने यह स्पष्ट किया कि राष्ट्र की प्रगति के लिए उद्यमिता और पूँजीवाद दोनों महत्वपूर्ण हैं,क्योंकि वे अर्थव्यवस्था में विकास और समृद्धि ला सकते हैं।
मूर्ति की यह टिप्पणी उस समय आई है,जब भारत में कार्यस्थल पर बढ़ते तनाव की चिंताएँ उठ रही हैं,जिसके कारण कई कर्मचारियों को शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई बार ऐसे तनावपूर्ण हालातों के कारण कर्मचारियों की जान भी जा चुकी है। मूर्ति की कड़ी मेहनत की अपील पर आलोचनाएँ इसलिए भी उठ रही हैं,क्योंकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार लंबा काम करने से न केवल कर्मचारियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है,बल्कि उनके व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह चेतावनी दी है कि लंबे समय तक काम करना,खासकर बिना पर्याप्त आराम के,तनाव,अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। यह कर्मचारियों के रिश्तों को भी प्रभावित कर सकता है,क्योंकि वे काम के दबाव में अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय नहीं बिता पाते हैं। इसके अतिरिक्त,शरीर पर लगातार दबाव डालने से स्वास्थ्य समस्याएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे कि दिल की बीमारी,उच्च रक्तचाप और अन्य गंभीर बीमारियाँ।
इस स्थिति में मूर्ति की सलाह और उसके परिणामों पर विचार करते हुए,यह महत्वपूर्ण है कि हम कार्यस्थल पर तनाव को कम करने के उपायों पर भी ध्यान दें। साथ ही,यह सुनिश्चित करें कि कर्मचारियों को संतुलित कार्य जीवन मिले,ताकि उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति ठीक रहे और वे राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान सही तरीके से दे सकें।
नारायण मूर्ति का विचार देश के विकास में योगदान देने के लिए कड़ी मेहनत की आवश्यकता पर आधारित है,लेकिन यह भी जरूरी है कि कार्यस्थल पर संतुलन और कर्मचारियों की भलाई को प्राथमिकता दी जाए,ताकि विकास के रास्ते में कर्मचारियों की सेहत और जीवनशैली पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।