नई दिल्ली,18 दिसंबर (युआईटीवी)- केंद्र सरकार ने मंगलवार (17 दिसंबर 2024) को लोकसभा में एक देश एक चुनाव विधेयक पेश किया,जिसका उद्देश्य देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित करने का है। विपक्षी दलों ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया,लेकिन सरकार ने इसे पेश करते हुए कहा कि इस पर व्यापक विचार-विमर्श के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाएगा। सरकार के मुताबिक,रामनाथ कोविंद समिति पर 47 राजनीतिक दलों ने अपनी राय दी थी,जिनमें 32 दलों ने समर्थन किया,जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया।
इस विधेयक को बीजेपी की अगुआई वाली सरकार ने पेश किया,लेकिन सरकार के लिए इसे पारित कराना एक बड़ी चुनौती होगी। इस विधेयक को पास करने के लिए कम-से-कम दो तिहाई वोटों की आवश्यकता होगी,जबकि वर्तमान में एनडीए के पास केवल सामान्य बहुमत है। इस विधेयक को पेश करने के दौरान संसद में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक मशीन से वोटिंग हुई,जिसमें सरकार के पक्ष में 269 वोट पड़े और विपक्ष में 198 वोट पड़े। यह वोटिंग साधारण बहुमत के आधार पर हुई थी,इसलिए यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत आसान रही।
लोकसभा में बीजेपी के पास 240 सांसद हैं,जबकि एनडीए का कुल आँकड़ा 293 सांसदों का है। हालाँकि,इस विधेयक को पेश करने के दौरान कई बीजेपी सांसद अनुपस्थित रहे,यहाँ तक कि पार्टी ने तीन लाइन का व्हिप जारी किया था ताकि सभी सांसद उपस्थित रहें। बावजूद इसके, 20 बीजेपी सांसद वोटिंग के समय लोकसभा में गैरहाजिर रहे,जिसके कारण पार्टी ने इन सांसदों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार,कुछ बीजेपी सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जयपुर यात्रा में व्यस्त थे,क्योंकि वहाँ की राज्य सरकार ने अपना एक साल पूरा किया था।
इस विधेयक को पारित करने के लिए सरकार को अधिक समर्थन की आवश्यकता होगी। दो तिहाई बहुमत के लिए लोकसभा में 362 वोटों की आवश्यकता होगी, जबकि राज्यसभा में 164 वोटों का समर्थन चाहिए। वर्तमान में राज्यसभा में एनडीए के पास 245 सीटों में से 112 सीटें हैं और उन्हें 6 मनोनीत सांसदों का भी समर्थन प्राप्त है। विपक्ष के पास 85 सीटें हैं। राज्यसभा में इस विधेयक को पारित करने के लिए सरकार को दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी,जो कि 164 सीटों के बराबर है।
बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार ने पहले भी संवैधानिक संशोधनों के जरिए बड़े फैसले लिए हैं,जैसे 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला। उस समय लोकसभा में 370 वोट सरकार के पक्ष में पड़े और 70 वोट विपक्ष में थे। बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए के पास उस समय 343 सांसद थे,जबकि आज एनडीए के पास केवल 293 सांसद हैं,जो दो तिहाई बहुमत से काफी कम हैं। विपक्ष का कहना है कि सरकार ने इस विधेयक को केवल एक राजनीतिक नरेटिव सेट करने के लिए पेश किया है और इसका उद्देश्य आगामी चुनावों में समर्थन जुटाना हो सकता है।
कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने विधेयक को पेश किए जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि तकनीकी रूप से इस विधेयक को पेश किया गया था,लेकिन आज जो चर्चा सुनने को मिली,उससे यह स्पष्ट हो गया कि अधिकांश दलों ने इसके दृष्टिकोण का कड़ा विरोध किया है। कांग्रेस के एक अन्य सांसद मणिकम टैगोर ने इस संबंध में कहा कि बीजेपी को इस विधेयक को पारित करने के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता है,जो 300 से अधिक वोटों का होगा,जबकि उनके पास केवल 263 वोट हैं।
विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार का यह कदम राजनीतिक फायदे के लिए है और इसे सिर्फ अपनी ताकत को बढ़ाने के उद्देश्य से लाया गया है। दूसरी ओर, बीजेपी के सहयोगी दल जैसे-जेडीयू,शिवसेना और तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने इस विधेयक का समर्थन किया है,साथ ही आंध्र प्रदेश की वाईएसआरसीपी ने भी इस विधेयक का समर्थन किया है। इन दलों का मानना है कि एक देश एक चुनाव के जरिए देश में चुनावी प्रक्रिया को व्यवस्थित किया जा सकता है और चुनावों की लागत को कम किया जा सकता है।
विपक्ष ने इस विधेयक को लेकर कई सवाल उठाए हैं,जिनमें इसके संविधानिक प्रभाव,राज्य सरकारों पर इसके असर और राज्यों की स्वायत्तता पर इसके पड़ने वाले प्रभाव प्रमुख हैं। इसके अलावा,विपक्ष का कहना है कि इस विधेयक को जल्दबाजी में पेश किया गया है,जबकि इसके लिए व्यापक विचार-विमर्श और सहमति की आवश्यकता थी।
इस विधेयक के जरिए सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएँ,ताकि चुनावी प्रक्रिया को सरल और कम खर्चीला किया जा सके। हालाँकि,इसके लिए संविधान में बदलाव की आवश्यकता होगी,जो कि सिर्फ दो तिहाई बहुमत से ही संभव है। सरकार को अब इस विधेयक को पारित कराने के लिए कई सांसदों का समर्थन जुटाना होगा और इसे आगे की प्रक्रिया में संसद से पारित कराना होगा।