नई दिल्ली,8 अप्रैल (युआईटीवी)- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) के दस साल पूरे होने का जश्न देशभर में मनाया जा रहा है। यह योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रमुख पहल है,जिसका उद्देश्य छोटे व्यवसायों और सूक्ष्म उद्यमों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। पीएमएमवाई की स्थापना माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी लिमिटेड (मुद्रा) के अंतर्गत की गई थी,जिसका मुख्य उद्देश्य सूक्ष्म इकाइयों के विकास और पुनर्वित्त को बढ़ावा देना है। इस योजना का प्रभाव देश के आर्थिक ताने-बाने में गहरा और स्थायी बदलाव ला रहा है।
पीएमएमवाई ने अप्रैल 2015 में लॉन्च होने के बाद से भारत में उद्यमिता के क्षेत्र में क्रांति ला दी है। अब तक इस योजना के तहत 32.61 लाख करोड़ रुपये के 52 करोड़ से अधिक लोन स्वीकृत किए जा चुके हैं। इससे न केवल बड़े शहरों में,बल्कि छोटे शहरों और गाँवों में भी व्यापारिक गतिविधियों का विस्तार हुआ है। यहाँ तक कि जहाँ पहले तक लोग सिर्फ नौकरी की तलाश में रहते थे,अब वे अपने ही व्यवसाय चला रहे हैं और रोजगार पैदा कर रहे हैं। यह मानसिकता में एक बड़ा बदलाव है, जहाँ लोग अब नौकरी चाहने वाले नहीं, बल्कि नौकरी देने वाले बन रहे हैं।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत सूक्ष्म और छोटे उद्यमों को 20 लाख रुपये तक का संस्थागत ऋण बिना कोई संपत्ति गिरवी रखे प्रदान किया जाता है। यह ऋण अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी),क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी),गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) द्वारा दिया जाता है। इससे छोटे उद्यमियों को बिना किसी बड़ी संपत्ति के कर्ज मिलने की संभावना बढ़ी है,जो पहले असंभव सा लगता था।
सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक,पीएमएमवाई ने जमीनी स्तर पर उद्यमिता के एक नए युग की नींव रखी है। सिलाई इकाइयों से लेकर चाय की दुकानों,सैलून,मैकेनिक की दुकानों और मोबाइल मरम्मत व्यवसायों तक,करोड़ों सूक्ष्म उद्यमियों ने आत्मविश्वास के साथ अपने व्यवसाय शुरू किए हैं। इस योजना ने उद्यमिता के क्षेत्र में कई नए अवसरों को जन्म दिया है,जिससे न केवल व्यापार वृद्धि को बढ़ावा मिला है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह एक मजबूत कदम साबित हुआ है।
पीएमएमवाई का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस योजना के अंतर्गत 68 प्रतिशत लाभार्थी महिलाएँ हैं। इस आँकड़े से यह स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई है। वित्तीय वर्ष 2016 और वित्तीय वर्ष 2025 के बीच प्रति महिला पीएमएमवाई संवितरण राशि में 13 प्रतिशत की सीएजीआर (संपूर्ण वर्ष दर वर्ष वृद्धि दर) से बढ़ोतरी हुई,जो अब 62,679 रुपये तक पहुँच गई है। इसके साथ ही,प्रति महिला वृद्धिशील जमा राशि में भी 14 प्रतिशत की सीएजीआर से वृद्धि हुई है और यह राशि 95,269 रुपये हो गई है।
जब महिलाओं को वित्तीय सहायता मिलती है,तो उनका सामाजिक और आर्थिक योगदान बहुत बढ़ जाता है और वे छोटे व्यवसायों (एमएसएमई) के माध्यम से न केवल अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करती हैं,बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार उत्पन्न करती हैं। इसके परिणामस्वरूप,महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों में रोजगार का सृजन हुआ है और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में यह योजना महत्वपूर्ण साबित हो रही है।
पीएमएमवाई ने पारंपरिक ऋण बाधाओं को तोड़ने में भी महत्वपूर्ण प्रगति की है। एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, 50 प्रतिशत मुद्रा खाते अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उद्यमियों के पास हैं,जिससे औपचारिक वित्त तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित हो रही है। यह योजना उन समुदायों को मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था में शामिल कर रही है,जो पहले तक वित्तीय सहायता के लिए पहुँच से बाहर थे।
इसके अलावा,मुद्रा ऋण धारकों में से 11 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदायों से हैं। यह आँकड़ा दर्शाता है कि प्रधानमंत्री मुद्रा योजना हाशिए पर पड़े समुदायों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में सक्रिय भागीदार बनने का अवसर प्रदान कर रही है, जिससे समावेशी विकास को बढ़ावा मिल रहा है। यह योजना न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा दे रही है,बल्कि सामाजिक समावेशीता को भी सुनिश्चित कर रही है।
पीएमएमवाई ने गैर-कॉर्पोरेट,गैर-कृषि सूक्ष्म और लघु उद्यमों को संस्थागत ऋण की पेशकश करके उन उद्यमों का समर्थन किया है,जो भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इन उद्यमों ने देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और अब ये व्यवसाय रोजगार सृजन,उत्पादकता और समृद्धि के लिए मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने भारत में सूक्ष्म और लघु व्यवसायों को स्थिरता और बढ़ावा दिया है। यह योजना न केवल छोटे उद्यमों की बढ़ती संख्या को समर्थन प्रदान करती है,बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी एक सकारात्मक परिवर्तन ला रही है। विशेष रूप से महिलाओं और हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए यह योजना एक संजीवनी बनकर आई है,जिसने उन्हें आत्मनिर्भर बनाने और अपने व्यवसायों को चलाने का अवसर प्रदान किया है। इस योजना के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के साथ-साथ समाज में समावेशी विकास भी हो रहा है।