नई दिल्ली,19 नवंबर (युआईटीवी)- भारत,अपनी अद्वितीय राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान के साथ, हमेशा से बाहरी और आंतरिक चुनौतियों का सामना करता आया है। हाल के दिनों में भारत और पश्चिमी शक्तियों,विशेष रूप से अमेरिका और कनाडा के बीच जो कूटनीतिक तनाव सामने आया है,वह मात्र तात्कालिक घटनाओं का परिणाम नहीं है। यह पश्चिमी ताकतों की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता को कमजोर करना और वैश्विक शक्ति के रूप में उसके उदय को रोकना है।
पश्चिमी देशों ने हमेशा भारत को दक्षिण एशिया के एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी और वैश्विक राजनीति में संभावित प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा है। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के समय से ही भारत को राजनीतिक रूप से विभाजित और आर्थिक रूप से निर्भर रखने की योजनाएँ बनाई गई थीं। आज, उसी औपनिवेशिक मानसिकता को अमेरिका और उसके सहयोगी देशों द्वारा अधिक परिष्कृत तरीके से लागू किया जा रहा है।
आधुनिक समय में ये प्रयास कूटनीतिक दबाव,आर्थिक प्रतिबंध और गुप्त अभियानों के रूप में सामने आते हैं। हाल में कनाडा के साथ भारत का विवाद इसका ताजा उदाहरण है, जहाँ एक अलगाववादी नेता की हत्या को लेकर भारत पर आरोप लगाए गए। यह मामला केवल दो देशों के बीच का विवाद नहीं है,बल्कि पश्चिमी देशों द्वारा भारत को कूटनीतिक रूप से कमजोर करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है।
भारत का वैश्विक मंच पर अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखना उसकी सांस्कृतिक और सभ्यतागत धरोहर का हिस्सा है। तैत्तिरीय उपनिषद का श्लोक “सत्यं वद धर्मं चर” सत्य और धर्म के प्रति भारत की अडिग प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यही सिद्धांत भारत को किसी भी प्रकार के बाहरी दबाव से मुक्त रख सकता है।
भारत और कनाडा के बीच हालिया तनाव केवल एक कूटनीतिक झगड़ा नहीं है। यह पश्चिमी ताकतों द्वारा भारत के प्रति उनके नकारात्मक दृष्टिकोण का प्रमाण है। कनाडा,जो अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के प्रभाव में है,भारत पर झूठे और बढ़ा-चढ़ाकर आरोप लगा रहा है। इन आरोपों का उद्देश्य भारत की कूटनीतिक साख को कमजोर करना है।
भारत के भीतर कुछ बुद्धिजीवी और सरकार विरोधी वर्ग,जैसे प्रताप भानु मेहता और सिद्धार्थ वरदराजन, इस पश्चिमी एजेंडे का समर्थन कर रहे हैं। ये लोग अपनी “स्वतंत्र सोच” के नाम पर एक विरोधी नैरेटिव बना रहे हैं,जो भारत की सरकार को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कमजोर दिखाने की कोशिश करता है।
इनकी रणनीति छोटी घटनाओं को राष्ट्रीय संकट के रूप में पेश करना है। उदाहरण के लिए,प्रताप भानु मेहता की माँग कि सरकार को “गुप्त अभियानों” पर सफाई देनी चाहिए,केवल पारदर्शिता का मुद्दा नहीं है। यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीतिक स्वायत्तता पर हमला है। आम भारतीय नागरिक यह समझता है कि अगर कोई गुप्त अभियान हुआ भी है,तो वह निश्चित रूप से राष्ट्रहित में ही था।
रामचरितमानस का दोहा, “रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई,” इस बात की पुष्टि करता है कि राष्ट्र को अपने कर्तव्य और प्रतिज्ञा पर अडिग रहना चाहिए। भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए भी यही दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है।
महुआ मोइत्रा और सागरिका घोष जैसे विपक्षी नेता,इन मुद्दों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं। इनका लक्ष्य स्पष्ट है: एक ऐसा नैरेटिव तैयार करना जो केंद्र सरकार को कमजोर करता है। हालांकी, इसके विपरीत, भारतीय जनता में देशभक्ति की भावना और मजबूत हो गई है।
पश्चिमी ताकतों द्वारा भारत पर दबाव डालने की रणनीति नई नहीं है। इतिहास गवाह है कि शीत युद्ध के दौरान भी अमेरिका ने भारत को अपने भू-राजनीतिक लक्ष्यों का मोहरा बनाने का प्रयास किया था। पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी ने इन प्रयासों का दृढ़ता से विरोध किया और गुट-निरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया। 1971 में बांग्लादेश के निर्माण में भारत की भूमिका ने अमेरिका समर्थित पाकिस्तान को बड़ा झटका दिया।
आज अमेरिका उसी शीत युद्ध युग की रणनीति को नए तरीके से दोहरा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने रूस-यूक्रेन संघर्ष में पश्चिमी दबावों के सामने झुकने से इंकार कर दिया। यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता का प्रमाण है।
पश्चिमी शक्तियाँ,विशेष रूप से अमेरिका,एक स्थिर और मजबूत भारतीय सरकार को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने अपने निर्णयों में स्वतंत्रता बनाए रखी है। यह भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए उसकी सरकार की मजबूती और स्वतंत्रता को दर्शाता है।
गिरिराज सिंह और अन्य भाजपा नेताओं ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि विपक्षी दल मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति में फँसे हुए हैं। यह स्थिति भारत की आंतरिक राजनीति को भी प्रभावित करती है। विपक्षी दलों का यह रवैया भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता को बाधित करने के लिए पश्चिमी एजेंडे के साथ मेल खाता है।
भारत का उभरना एक वैश्विक शक्ति के रूप में तय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने अपनी सैन्य और कूटनीतिक स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त किया है। यह आत्मनिर्भर भारत अब विदेशी ताकतों के दबाव में आने वाला नहीं है।
न केवल रूस-यूक्रेन संघर्ष,बल्कि कनाडा के साथ मौजूदा विवाद भी भारत की कूटनीतिक दृढ़ता का प्रतीक है। मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है।
भारत का वैश्विक शक्ति के रूप में उभरना पश्चिमी शक्तियों के लिए एक चुनौती है,लेकिन भारत की जनता और नेतृत्व, दोनों ही अपने राष्ट्रहितों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कथन – “भारत की स्वतंत्रता अमूल्य है और इसकी रक्षा के लिए हम संकल्पित हैं”, भारत के आत्मविश्वास को व्यक्त करता है।
यह संदेश केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए है। यह एक अडिग चेतावनी है कि भारत अपनी संप्रभुता और रणनीतिक स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करेगा।
आज का भारत एक ऐसा राष्ट्र है जो वैश्विक मंच पर आत्मविश्वास और गरिमा के साथ खड़ा है। चाहे अमेरिका और कनाडा जैसे देश इसे कितना भी दबाने की कोशिश करें, भारत का उदय अब अपरिहार्य है। भारतीय नागरिकों की देशभक्ति और नेतृत्व की दृढ़ता इसे और भी मजबूत बना रही है।