खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह (तस्वीर क्रेडिट@pkray11)

खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह और उनकी पार्टी का कनाडा चुनाव में करारी हार,ट्रूडो सरकार में ‘किंगमेकर’ की हैसियत रखते थे

ओटावा,29 अप्रैल (युआईटीवी)- कनाडा की राजनीति में कभी निर्णायक भूमिका निभाने वाले और ‘किंगमेकर’ कहे जाने वाले जगमीत सिंह अब खुद एक बड़े राजनीतिक पराजय का शिकार हो चुके हैं। 2025 के हालिया संघीय चुनावों में सिंह न केवल अपना संसदीय चुनाव हार गए,बल्कि उनकी पार्टी नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) भी लगभग अप्रासंगिक हो गई है। यह राजनीतिक घटनाक्रम कनाडा के सत्ता समीकरणों में एक बड़ा बदलाव है और साथ ही भारत-कनाडा संबंधों की दिशा में भी एक नया मोड़ लेकर आ सकता है।

2017 में एनडीपी की कमान संभालने वाले पेशे से वकील जगमीत सिंह, 2019 में ब्रिटिश कोलंबिया के बर्नबी सेंट्रल निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुने गए थे। उस समय जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी अल्पमत में थी और सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें एनडीपी का समर्थन चाहिए था। जगमीत सिंह ने बिना सरकार में शामिल हुए लिबरल्स को समर्थन देकर सत्ता को संतुलित बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई थी।

जगमीत सिंह को कनाडा में भारत विरोधी खेमे का एक प्रमुख चेहरा माना जाता रहा है। उन्होंने खालिस्तान समर्थक गतिविधियों को खुला समर्थन दिया और भारत के खिलाफ कई तीखे बयान दिए। 2024 में उन्होंने खुलकर आरोप लगाया था कि कनाडा में खालिस्तान समर्थकों पर हो रहे हमलों के पीछे भारत का हाथ है। इसके बाद उन्होंने भारतीय राजनयिकों के निष्कासन की माँग भी की थी।

उनके इस रुख ने भारत-कनाडा संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया। जस्टिन ट्रूडो ने भी उनके कहने पर छह भारतीय राजनयिकों को निष्कासित कर दिया था,जिससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों में भारी खटास आ गई थी।

2025 के चुनावों से पहले तक एनडीपी को कनाडा ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (सीबीसी) के एक सर्वेक्षण में 17.4% जनसमर्थन प्राप्त था,लेकिन चुनाव की पूर्वसंध्या तक यह समर्थन घटकर 8.1% पर आ गया।

एनडीपी की लोकप्रियता में इस गिरावट का कारण सिर्फ सिंह की भारत विरोधी नीति नहीं थी,बल्कि अमेरिका और कनाडा के बीच व्यापार विवाद और टैरिफ संकट जैसे आर्थिक मुद्दे भी इसके पीछे थे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कनाडा के खिलाफ टैरिफ नीति और कनाडा को अमेरिका में मिलाने जैसी बयानबाजी ने एनडीपी की छवि को नुकसान पहुँचाया।

इस चुनाव में जगमीत सिंह ब्रिटिश कोलंबिया के बर्नबी सेंट्रल सीट से तीसरे स्थान पर आ गए। उनके आगे लिबरल पार्टी के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की और कंज़र्वेटिव पार्टी का उम्मीदवार भी उनसे आगे रहा। यह पराजय उनकी राजनीतिक छवि के लिए बड़ा झटका है।

पार्टी की हालत भी कुछ अलग नहीं रही। पिछले संसदीय कार्यकाल में एनडीपी के पास 24 सीटें थीं,जो इस बार घटकर सिर्फ 7 पर सिमटती दिख रही है। चुनावी नतीजों में पार्टी ने केवल 4 सीटें जीतीं और 3 पर आगे चल रही थी।

चुनाव नतीजों के बाद अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि, “मुझे निराशा है कि हम और सीटें नहीं जीत पाए,लेकिन मैं अपने आंदोलन से निराश नहीं हूँ।” उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि जैसे ही पार्टी का नया नेता चुना जाएगा,वे एनडीपी का नेतृत्व छोड़ देंगे।

2024 में ही जगमीत सिंह ने जस्टिन ट्रूडो से समर्थन वापस लेने की घोषणा की थी, जिससे ट्रूडो की अल्पमत सरकार संकट में आ गई थी। ट्रूडो के पास बहुमत नहीं था और एनडीपी के समर्थन के बिना वह विश्वास मत पास नहीं कर सकते थे।

इस दबाव के चलते ट्रूडो को अंततः इस्तीफा देना पड़ा,जिससे लिबरल पार्टी की छवि को धक्का लगा,लेकिन 2025 के चुनावों में कनाडा की जनता ने आश्चर्यजनक रूप से लिबरल पार्टी को ही फिर से समर्थन दिया,यह सोचकर कि यही पार्टी देश को सुरक्षा और स्थिरता दे सकती है।

जगमीत सिंह की राजनीति में गिरावट न केवल व्यक्तिगत हार है,बल्कि यह कनाडा में भारत विरोधी एजेंडे की विफलता भी दिखाती है। सिंह की नीति और विचारधारा ने उनकी पार्टी को ही नहीं,खुद उन्हें भी हाशिये पर पहुँचा दिया है।

अब जबकि उन्होंने नेतृत्व छोड़ने का ऐलान कर दिया है,एनडीपी के सामने अपनी पहचान और प्रासंगिकता को बचाने की चुनौती है। वहीं भारत-कनाडा संबंधों में अब संभावित सुधार की उम्मीद की जा सकती है,क्योंकि एक कट्टर विरोधी नेता अब सत्ता से बाहर हो गया है।