मॉस्को,8 अप्रैल (युआईटीवी)- क्रेमलिन ने सोमवार को यह कहा कि रूस, तेहरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते तनाव को कम करने के लिए हर संभव मदद करने के लिए तैयार है। रूस ने इस मुद्दे पर कई बार मध्यस्थता की पेशकश की है और इस बार भी उसने यही रुख अपनाया है। अमेरिका का कहना है कि तेहरान को परमाणु समझौते पर फिर से बातचीत करनी चाहिए या फिर उसे सैन्य कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की चेतावनी देने के बाद से पूरे क्षेत्र में तनाव की स्थिति और भी बढ़ गई है।
क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने इस विषय पर टिप्पणी करते हुए कहा कि रूस अपने ईरानी साझेदारों के साथ लगातार इस मुद्दे पर चर्चा कर रहा है,जिसमें परमाणु समझौते का मुद्दा भी शामिल है। उन्होंने आगे कहा, “हमारे लिए यह प्रक्रिया निकट भविष्य में भी जारी रहेगी। रूस राजनीतिक और कूटनीतिक उपायों से इस समस्या के समाधान में योगदान देने के लिए पूरी तरह से तैयार है।” रूस का यह बयान इस बात को स्पष्ट करता है कि वह तेहरान और वाशिंगटन के बीच तनाव को कम करने में एक प्रमुख मध्यस्थ के रूप में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
ईरान और अन्य विश्व शक्तियों के बीच 2015 में एक ऐतिहासिक परमाणु समझौता हुआ था, जिसे “ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन” (जेसीपीओए) कहा जाता है। इस समझौते के तहत,ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के बदले में संयुक्त राष्ट्र से संबंधित प्रतिबंधों में राहत पाने पर सहमत हुआ था। इसके बावजूद, 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने प्रशासन के पहले कार्यकाल के दौरान इस समझौते से खुद को अलग कर लिया और अधिकतम दबाव की नीति के तहत ईरान पर नए प्रतिबंध लगाए। इसके बाद से दोनों देशों के बीच परमाणु समझौते के मुद्दे पर विवाद और बढ़ गया है।
ईरान का कहना है कि वह परमाणु ऊर्जा का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए करना चाहता है और उसने यह भी स्पष्ट किया है कि वह परमाणु हथियार हासिल करने की इच्छा नहीं रखता। इसके बावजूद,ट्रंप प्रशासन ने ईरान पर आरोप लगाया कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम के जरिए परमाणु हथियार बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। यह मुद्दा अब भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना हुआ है।
ईरान ने ट्रंप की सीधी वार्ता की पेशकश को ठुकरा दिया है। इस बीच,एक वरिष्ठ ईरानी अधिकारी ने चेतावनी दी है कि यदि अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमला किया गया,तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं। ईरान ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह किसी भी प्रकार के सैन्य संघर्ष से बचने की कोशिश करेगा,लेकिन अगर उसे मजबूर किया गया तो वह जवाबी कार्रवाई करेगा।
इस बीच,रूस के उप विदेश मंत्री सर्गेई रयाबकोव ने पिछले सप्ताह कहा कि ट्रंप की ओर से ईरान पर सैन्य हमले की धमकी ने सिर्फ स्थिति को और जटिल किया है। रयाबकोव ने चेतावनी दी कि इस प्रकार के हमले व्यापक क्षेत्र के लिए विनाशकारी हो सकते हैं और इन हमलों का परिणाम सिर्फ ईरान तक सीमित नहीं रहेगा। उनका यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है,क्योंकि रूस ने पहले अमेरिका के खिलाफ इस तरह की तीखी आलोचना से बचने का प्रयास किया है।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के शासन में रूस ने अमेरिका के साथ रिश्तों को सुधारने के लिए कई कदम उठाए हैं और ट्रंप का भी रूस के प्रति रवैया अपेक्षाकृत नरम रहा है। हालाँकि,रूस के यह बयान अमेरिकी और ईरानी तनावों के संदर्भ में एक स्पष्ट संदेश देने के लिए हैं।
वहीं,यूक्रेन में चल रहे युद्ध के बाद से रूस और ईरान के संबंधों में भी सुधार हुआ है। 2023 में,दोनों देशों ने एक रणनीतिक साझेदारी संधि पर हस्ताक्षर किए थे,जिससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और व्यापारिक संबंधों को और मजबूत किया गया है। यह समझौता यूक्रेन संघर्ष के दौरान और भी महत्वपूर्ण हो गया है,क्योंकि ईरान ने रूस को ड्रोन और अन्य सैन्य उपकरणों की आपूर्ति की है,जो रूस के लिए यूक्रेन युद्ध में महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं।
दूसरी ओर,ट्रंप प्रशासन के बाद जो भी सरकार सत्ता में आएगी,उसे इस मुद्दे पर एक ठोस नीति अपनाने की जरूरत होगी,क्योंकि ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर वैश्विक चिंताएँ बनी हुई हैं। अमेरिका और ईरान के बीच तनाव बढ़ने के कारण,क्षेत्रीय सुरक्षा पर भी गंभीर खतरे मंडरा रहे हैं और ऐसे में रूस की भूमिका एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ के रूप में उभर कर सामने आती है।
समझौते की ओर बढ़ते हुए रूस यह सुनिश्चित करना चाहता है कि ईरान और अमेरिका के बीच तनावों को कम करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएँ,ताकि न केवल दोनों देशों के रिश्तों में सुधार हो,बल्कि पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र में शांति बनी रहे। रूस,जो पहले ही तेहरान के साथ अपने रिश्तों को मजबूत कर चुका है,अब इस मामले में अपने कूटनीतिक कौशल का उपयोग करके इस संकट के समाधान की दिशा में कदम बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
यह स्थिति अब पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चिंता बन गई है और उम्मीद की जा रही है कि रूस, ईरान और अमेरिका के बीच की इस कूटनीतिक जटिलता को सुलझाने के लिए कोई कारगर समाधान निकले।