चंडीगढ़,3 दिसंबर (युआईटीवी)- शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को अकाल तख्त की ओर से सजा सुनाए जाने के बाद अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में व्हीलचेयर पर पहुँचे। इस सजा के तहत उन्हें स्वर्ण मंदिर में सेवादार के रूप में कार्य करना होगा। उन्हें न केवल मंदिर के दरवाजे पर ड्यूटी करनी होगी,बल्कि लंगर सेवा भी करनी होगी। अकाल तख्त ने सत्ता में रहते हुए उनके द्वारा की गई गलतियों का हवाला देते हुए यह सजा सुनाई है।
सुखबीर सिंह बादल के पैर में चोट लगी हुई है,जिसके कारण वह व्हीलचेयर पर बैठे हुए थे। बावजूद इसके,उन्होंने सजा की अवधि के दौरान स्वर्ण मंदिर में अपनी ड्यूटी पूरी करने का संकल्प लिया। वह तीन दिसंबर से दो दिन के लिए स्वर्ण मंदिर (गोल्डन टेंपल) के घंटाघर के बाहर ड्यूटी करेंगे। इस दौरान उनके गले में तख्ती लटकती हुई दिखाई दी,जो अकाल तख्त द्वारा दी गई माफी की प्रतीक है। साथ ही,उनके हाथ में एक बरछा भी था,जो उनकी सजा का हिस्सा है। सुखबीर सिंह बादल की सजा शुरू हो चुकी है और वह इस समय इसे निभा रहे हैं।
सुखबीर सिंह बादल के साथ-साथ सुखदेव सिंह ढींडसा भी अपनी सजा काटने के लिए पहुँचे थे। उनके गले में भी तख्ती और हाथ में बरछा था। जब उनसे सजा के संबंध में सवाल किया गया,तो उन्होंने कहा, “यह मेरे लिए परमात्मा का हुक्म है और मैं इसका पालन करूँगा। मैं इसका पालन करने में किसी भी प्रकार की कोताही नहीं बरतूँगा।” अपनी सजा के तहत,वे श्री दरबार साहिब में सेवादार की ड्यूटी करेंगे। इसके बाद,वह दो दिन श्री केशगढ़ साहिब,दो दिन श्री दमदमा साहिब तलवंडी साबो, दो दिन श्री मुक्तसर साहिब और दो दिन श्री फतेहगढ़ साहिब में सजा काटेंगे। इस दौरान वह गले में तख्ती पहनकर और हाथ में बरछा लेकर सेवादार की भूमिका निभाएँगे।
यह पहली बार नहीं है,जब किसी सिख नेता को इस तरह की सजा सुनाई गई है। इससे पहले भी कई सिख नेताओं को अकाल तख्त द्वारा सजा दी जा चुकी है। सुखबीर सिंह बादल और सुखदेव सिंह ढींडसा को पहले भी गुरुद्वारे का शौचालय और बर्तन साफ करने की सजा दी गई थी। हालाँकि,इस बार उनकी सजा में कुछ बदलाव किए गए हैं,क्योंकि सुखबीर सिंह बादल के पैर में चोट लगी हुई है और सुखदेव सिंह ढींडसा की सेहत भी ठीक नहीं है। इन कारणों से उन्हें सजा में छूट दी गई और व्हीलचेयर पर बैठकर सजा पूरी करने का आदेश दिया गया।
सुखबीर सिंह बादल को यह सजा साल 2007 में सलाबतपुरा में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने के कारण सुनाई गई थी। इसके अलावा, उन पर यह भी आरोप था कि उन्होंने वोट बैंक की राजनीति के चलते अपने पंथ के साथ गद्दारी की थी। इन आरोपों के कारण अकाल तख्त ने उन्हें सजा दी और इस सजा का उद्देश्य उन्हें अपनी गलतियों का एहसास दिलाना था।
सजा के बाद सुखबीर सिंह बादल ने यह स्पष्ट किया कि वह इस आदेश का पालन पूरी निष्ठा से करेंगे और इसे अपने धर्म और आस्था का हिस्सा मानते हुए स्वीकार किया। उनकी सजा को एक धार्मिक और सामाजिक अनुशासन के रूप में देखा जा रहा है,जो सिख धर्म में एक लंबे समय से चले आ रहे परंपराओं का हिस्सा है। यह घटना सिख समुदाय में एक संदेश देने का काम करती है कि अपने कर्तव्यों और आस्थाओं के प्रति जिम्मेदारी और निष्ठा का पालन करना चाहिए।