निषादराज पार्क

यूपी में श्रृंगवेरपुर की पावन धरती बनेगी सामाजिक समरसता का केंद्र

लखनऊ, 27 सितम्बर (युआईटीवी/आईएएनएस)- भारतीय परंपरा और संस्कृति में भगवान श्रीराम सामाजिक समरसता के सबसे बड़े प्रतीक हैं। वनवास के दौरान उन्होंने सबरी के जूठे बेर खाये। चित्रकूट में कोल-भीलों को जोड़ा। गिद्धराज जटायू का अंतिम संस्कार खुद अपने हाथों से किया और उसमें ही एक प्रसंग है श्री राम का निषादराज से मिलने का जिसमे श्रृंगवेरपुर में भगवान ने उन्हें गले लगाया था। वनगमन के दौरान भगवान श्री राम ने जिस निषादराज गले लगाकर सबसे पहले सामाजिक समरसता का संदेश दिया था, उस परंपरा को और आगे बढ़ाते हुए भाजपा की योगी सरकार उसे सामाजिक समरसता का प्रतीक बनायेगी। इस क्रम में वहां अन्य विकास कार्यों के अलावा निषादराज पार्क भी बनेगा। पार्क का मुख्य आकर्षण भगवान श्रीराम और निषादराज की 15 फीट ऊंची प्रतिमा होगी।

पार्क देशी-विदेशी पर्यटकों व श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बने इसके लिए वहां खूबसूरत लैंडस्केपिंग, साइनेज, मयूरेल-फ्रेस्को पेंटिंग, भव्य प्रवेश द्वार, गजीबो, सीसी रोड और बाउंड्रीवाल का निर्माण शामिल है। बाउंड्रीवाल पर श्रीराम और निषादराज के मिलन के समय की अन्य प्रमुख घटनाओं को भी उकेरा जायेगा। इस बाबत वित्तीय वर्ष 2020-2021 करीब 144.49 करोड़ रुपये की योजना मंजूर की जा चुकी है।

इसके अलावा केंद्र सरकार की स्वदेश दर्शन स्कीम के तहत श्रृंगवेरपुर और चित्रकूट धाम के पर्यटन विकास के लिए 69.45 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए हैं। इनसे श्रंगवेरपुर में निषादराज स्थल पर 177 मीटर लंबा संध्या घाट, टूरिस्ट फैसिलिटेशन सेंटर, पाकिर्ंग, लास्ट माइल कनेक्टिविटी, सोलर लाइटिंग, राम शयन और सीताकुंड का काम पूरा हो चुका है। इसी योजना के तहत चित्रकूट में भी रामायण गैलरी, परिक्रमा मार्ग पर छाजन, लास्ट माइल कनेक्टिविटी, फुट ओवरब्रिज और रामायण गैलरी के काम हुए हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रंगवेरपुर वही स्थान है जहां श्री राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ निर्वासन के रास्ते पर गंगा नदी को पार कर दिया। श्रृंग्वेरपुर प्रयागराज के आस-पास के प्रमुख भ्रमण स्थलों में से एक है। श्रृंगवेरपुर निशादराज के प्रसिद्ध राज्य की राजधानी या ‘मछुआरों का राजा’ के रूप में उल्लेख किया गया है। रामायण में राम, सीता और उनके भाई लक्ष्मण का श्रृंगवेरपुर आने का अंश पाया गया है। श्रृंगवेरपुर में किये गये उत्खनन कार्यों ने श्रृंगी ऋषि के मंदिर का पता चला है। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि गांव का नाम उन ऋषि से ही मिला है। मुगल काल के समाप्ति के दौरान वहा वास करने वाले विभिन्न वंश के क्षत्रियों द्वारा अराजक ताकतों का सामना करने के लिए सिंगरौर समूह बनाया गया था उन्हीं सिंगरौर समूह के क्षत्रिय के नाम पर तत्कालीन नाम सिंगरौर रखा गया है।

रामायण का उल्लेख है कि भगवान राम, उनके भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता, निर्वासन पर जंगल जाने से पहले गांव में एक रात तक रहे। ऐसा कहा जाता है कि नावकों ने उन्हें गंगा नदी पार करने से इंकार कर दिया था तब निषादराज ने खुद उस स्थल का दौरा किया जहां भगवान राम इस मुद्दे को सुलझाने में लगे थे। उन्होंने उन्हें रास्ता देने की पेशकश की अगर भगवान राम उन्हें अपना पैर धोने दें, राम ने अनुमति दी और इसका भी उल्लेख है कि निशादराज ने गंगा जल से राम के पैरों को धोया और उनके प्रति अपना श्रद्धा दिखाने के लिए जल पिया। जिस स्थान पर निषादराज ने राम के पैरों को धोया था, वह एक मंच द्वारा चिह्न्ति किया गया है। इस घटना को पर्याप्त करने के लिए इसका नाम रामचुरा रखा गया है। इस स्थान पर एक छोटा मंदिर भी बनाया गया है। नदी के किनारे पर एक अंतिम संस्कार केंद्र है और यह कहा गया है कि जो भी यहां अंतिम संस्कार करते हैं, वह धार्मिक रूप से शुद्ध होते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के सभी लोग अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए यहां आते हैं।

प्रमुख सचिव (पर्यटन) मुकेश मेश्राम का कहना है कि “धार्मिक पर्यटन के जरिए लोगों को रोजगार देने की दिशा में सरकार तेजी से कदम बढ़ा रही है। उसी को देखते हुए योजनाओं पर काम हो रहा है। इससे समाजिक समरसता का संदेश मिलेगा।”

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